'मानव में क्रांति' और 'विश्व में शांति' केवल 'ब्रह्मज्ञान' द्वारा संभव है |
अन्तरात्मा हर व्यक्ति की पवित्र होती है, दिव्य होती है | यहाँ तक कि दुष्ट से दुष्ट मनुष्य की भी | आवश्यकता केवल इस बात की है कि उसके विकार ग्रस्त मन का परिचय उसके सच्चे, विशुद्ध आत्मस्वरूप से कराया जाये |
यह परिचय बाहरी साधनों से सम्भव नहीं है | केवल 'ब्रह्मज्ञान' की प्रदीप्त अग्नि ही व्यक्ति के हर पहलू को प्रकाशित कर सकती है | यही नहीं, आदमी के नीचे गिरने की प्रवृति को 'ब्रह्मज्ञान' की सहायता से उर्ध्वोमुखी या ऊँचे उठने की दिशा में मोड़ा जा सकता है | इससे वह एक योग्य व्यक्ति और सच्चा नागरिक बन सकता है |
'ब्रह्मज्ञान' प्राप्त करने के बाद साधना करने से आपकी सांसारिक जिम्मेदारियां दिव्य कर्मों में बदल जाती हैं | आपके व्यक्तत्व का अंधकारमय पक्ष दूर होने लगता है | विचारों में सकारात्मक परिवर्तन आने लगता है और नकारात्मक प्रविर्तियाँ दूर होती जाती हैं | अच्छे और सकारात्मक गुणों का प्रभाव आपके अन्दर बढने लगता है | वासनाओं,भ्रतियों और नकारात्मकताओं में उलझा मन आत्मा में स्थित होने लगता है | वह अपने उन्नत स्वभाव यानि समत्व, संतुलन और शांति की दिशा में उत्तरोत्तर बढता जाता है | यही 'ब्रह्मज्ञान' की सुधारवादी प्रक्रिया है |
अगर हम जीवन का यह वास्तविक तत्व यही 'ब्रह्मज्ञान' प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें सच्चे सदगुरू की शरण में जाना होगा | वे आपके 'दिव्यनेत्र' को खोल कर, आप को ब्रह्मधाम तक ले जा सकते हैं, जहाँ मुक्ति और आनन्द का साम्राज्य है | सच्चा सुख हमारे अन्दर ही विराजमान है, लेकिन उसका अनुभव हमें केवल एक युकित द्वारा ही हो सकता है, जो पूर्ण गुरू की कृपा से ही प्राप्त होती है | इस लिए ऐसा कहना अतिशयोकित न होगा कि सदगुरू संसार और शाश्वत के बीच सेतु का काम करते हैं | वे क्षनभंगुरता से स्थायित्व की ओर ले जाते हैं | हमें चाहिए कि हम उनकी कृपा का लाभ उठाकर जीवन सफल बना लें |
मानव समाज की दम तोड़ती मानवता को यदि कोई बचा सकता है तो वह है 'दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान'