Wednesday, December 8, 2010

कबीरा सभ जग दुख भरा सुखवंता नहि कोय |



कबीरा सभ जग दुख  भरा सुखवंता नहि कोय |
सुखीए केवल भगत जन जिस राम नाम धन होय ||

इस संसार में देखते हैं कई कोई इन्सान संसार के पदार्थों को जितना चाहे एकत्रित कर ले परन्तु उस की तृष्णा कभी भी शांत नहीं होती है | लेनिक जिस इन्सान  के हिरदे में परमात्मा की भक्ति बस जाती है उस की तृष्णा स्वयं ही शांत हो जाती है | सिकंदर या रावण के पास किसी सांसारिक वस्तु की  कमी नहीं थी | किन्तु वे लोग जीवन भर अशांत ही रहे | भक्त कबीर जी,नामदेव जी,गुरू रविदास जी जैसे महापुरष जिन के पास सांसारिक धन सम्पदा नहीं थी परन्तु वे अपने जीवन में कभी भी अशांत नहीं रहे | इस  लिए महापुरष इन्सान को समझाते हैं के तुझे और किसी भी तरह शांति प्राप्त नहीं हो सकती |
वेद पुराण व् सभी ग्रन्थ इक ही  बात कहते हैं कि इस जीव  को प्रभु की भक्ति के बिना सुख नहीं मिल सकता | गोस्वामी तुलसी दास जी श्री रामचरित मानस में कहते है कई बहुत सी ऐसे बातें है जो कि असंभव हैं किन्तु यह मान भी लिया जाए कि वे हो सकती हैं | लेकिन यह नहीं माना जा सकता कि  प्रभु की भक्ति के बिना किसी को सुख मिल सकता है | कछुए की पीठ बहुत सख्त होती है | किसी भी काल  में यह नहीं सुना गया कि कछुए की पीठ पर बाल पैदा हो गए हों और आने वाले समय में भी इस तरह को कोई  संभावना नहीं है | बाँझ स्त्री को कभी पुत्र पैदा नहीं हो सकता,पर हो सकता है कि  आने वाले समय में लोग इस बात को मान  लें कि किसी बाँझ स्त्री के बेटे ने किसी को मार दिया हो | परन्तु परमात्मा से विमुख होकर सुख की प्राप्ति कभी नहीं हो सकती | इस लिए श्री गुरु तेग बहादुर जी कहते हैं -

जाग लहु रे मना जग लेहु कहा गाफल सोइआ |
जो तनु  उपजिआ संग ही सो भी संगि न होइआ ||

हे जीव ! यह तेरे जागने का समय है ,सोने का नहीं | याद रख जब तू इस संसार में आया था,तब यह शरीर तेरे साथ आया था | पर जब तू इस संसार से जाएगा,तब यह शरीर भी तेरे साथ नहीं जाएगा | परन्तु विचारणीय  तथ्य यह है कि यहाँ पर किस निद्रा की बात कही गयी है |
उठो,जागो और अपनी मंजिल की प्राप्ति करो | पहले उठने और फिर जागना यह किस निद्रा की बात है ? साधारणत हम यह देखते हैं कि जगा हुआ इन्सान ही उठ सकता है | तब यहाँ पहले उठना फिर जागना यह किस निद्रा की ओर संकेत है ? यह अज्ञान जनित निद्रा है | इस निद्रा से न्विर्ति पाने के लिए आवश्यक है पहले उठना अर्थात हम प्रयास  करे,खोज करें पूर्ण संत की, उनसे आत्म ज्ञान प्राप्त करें और जागृत हों | शारीर की निद्रा से तो प्रतेक  इंसान देर सवेर जाग  ही जाता है किन्तु आत्मिक तोर पर सभी जीव जाग जाएँ,यह कहा नहीं जा सकता | इस लिए  हमें भी चाहिए ऐसे पूर्ण संत की खोज करें,तभी हम आत्मिक तोर पे जाग सकते हैं और हमारे जीवन में सदीवी सुख और शांति आ सकती है | 




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