पहिलै पिआरि लगा थण दुधि ॥दूजै माइ बाप की सुधि॥
तीजै भया भाभी बेब ॥चउथै पिआरि उपंनी खेड ॥
पंजवै खाण पीअण की धातु ॥छिवै कामु न पुछै जाति ॥
सतवै संजि कीआ घर वासु ॥अठवै क्रोधु होआ तन नासु ॥
नावै धउले उभे साह ॥दसवै दधा होआ सुआह ॥
गए सिगीत पुकारी धाह ॥उडिआ हंसु दसाए राह ॥
आइआ गइआ मुइआ नाउ॥पिछै पतलि सदिहु काव ॥
नानक मनमुखि अंधु पिआरु ॥बाझु गुरू डुबा संसारु ॥२॥ (Gurbani-137)
श्री गुरु नानक देव जी कहते हैं कि सब से पहले इस जीव आत्मा का माता के दूध से प्रेम हो गया और जब कुछ होश आया तो माँ-बाप की पहचान हो गई | बहन भाई की जानकारी मिल गई | उस के बाद खेलने कूदने में मस्त हो गया | कुछ बड़ा हुआ तो खाने पीने की इच्छाएँ पैदा होने लगी | उस के बाद तरह-तरह की कामनाओं का शिकार हुआ | फिर घर गृहस्ती में उलझ गया | आठवें स्थान पर कहतें हैं कि क्रोश द्वारा तन का नाश करने पर तुल गया | बाल सफेद हो गये,बूढा हो गया,शवांस भी आने मुश्किल हो गये | उस के बाद शरीर जल कर राख बन जाता है | हंस रुपी जीव आत्मा शरीर छोड़ देती है | सगे सम्बन्धी सभी रोते हैं | मानव शरीर में जन्म लिया और शरीर के ही कार्य व्वहार में लगे रहे | एक दिन ऐसा आया जब शरीर छोड़कर चले गये | जाने के बाद घर वाले श्राद्ध इत्यादि में लग जाते हैं| श्री गुरु नानक देव जी कहते हैं कि मनमुख व्यक्ति,मन के विचारों के अनुसार चलने वाले,अंधों के समान व्वहार करते हुए नजर आते हैं | क्यों कि जीवन को पहचानने की आँख गुरु द्वारा मिलती है | परन्तु गुरू को जाने बिना यह संसार अज्ञानता के अंधकार में डूब रहा है | इस लिए हमें भी चाहिए कि हम ऐसे पूर्ण संत की खोज करें तभी हमारा अज्ञानता का अंधकार समाप्त हो सकता है और मानव जीवन सफल हो सकता है |
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