कंचन देह किस काम की जा मुखि नाहि नाम ||
संत कबीर जी कहते हैं नाम जपते हुए तो कोढ़ी मनुष्य भी अच्छा है | वह सोने जैसे काया भी किस काम की है,जहाँ प्रभु के नाम का सुमरिन ही नहीं है | लेकिन आज मनुष्य उसी नाम को भूल चूका है और संसार के विकारों से ग्रसित है |
बिनु कंठै कैसे गावनहारी ॥ बिनु बाजे कैसो निरतिकारी ॥
जील बिना कैसे बजै रबाब ॥नाम बिना बिरथे सभि काज ॥१॥
नाम बिना कहहु को तरिआ ॥बिनु सतिगुर कैसे पारि परिआ ॥१॥ रहाउ ॥ (Gurbani -1140)
जिस प्रकार बिना संगीत के नृत्य नहीं हो सकता,कंठ के बिना गाया नहीं जा सकता | जील के बिना रबाब नहीं बज सकता | ठीक इसी प्रकार नाम के बिना जितने कार्य हैं वह सब व्यर्थ हैं | गुरू अर्जुन देव जी कहते हैं कि नाम के बिना कौन तर सकता है | नाम के बिना कोई भवसागर पार नहीं कर सकता और बिना सतगुरु के नाम की प्राप्ति नहीं होती |
बिनु सतिगुर को नाउ न पाए प्रभि ऐसी बणत बणाई हे ॥९॥ (Gurbani - 1046)
दुलभ देह पाई वडभागी ॥नामु न जपहि ते आतम घाती ॥१॥ (Gurbani -188)
कहते हैं कि बिना सत्गुरु के नाम की प्राप्ति नहीं हो सकती,प्रभु ने ऐसा नियम बनाया है | आज जो मनुष्य तन हमें मिला है | यह बहुत दुर्लभ है | लेकिन एस दुर्लभ तन की प्राप्ति के बाद यदि प्रभु के नाम का सुमरिन न किया तो कहते हैं | वह आत्म हत्यारा है |
मोती त मंदर ऊसरहि रतनी त होहि जड़ाउ ॥
कसतूरि कुंगू अगरि चंदनि लीपि आवै चाउ ॥
मतु देखि भूला वीसरै तेरा चिति न आवै नाउ ॥१॥(Gubani - 14)
मोतियों का महल बना कर यदि उसमें हीरे जड़वा दिए जाएँ | तरह - तरह की सुगन्धियों का लेप भी लगवा लें | लेकिन कहते हैं कि मनुष्य जानता है कि सब कुछ एक दिन छुट जायेगा | लेकिन फिर भी नाम को हिरदे में नहीं बसाता है | इस लिए कहा कि -
सुखु नाही बहुतै धनि खाटे ॥सुखु नाही पेखे निरति नाटे ॥
सुखु नाही बहु देस कमाए ॥सरब सुखा हरि हरि गुण गाए ॥१॥(Gubani - 1147)
संसार की किसी भी वास्तु में सदीवी सुख नहीं मिल सकता | चाहे कितने भी नृत्य देख लें या कितने भी देशों में व्यापार चला लें | जीवन के सभी सुख केवल प्रभु के गुणों का गायन करने पर ही मिलते हैं | अहंकार के कारण मनुष्य संसार के मोह मैं डूबा हुआ है | लेकिन जिस संसार के मोह में मनुष्य डूबा हुआ है,जिस संसार को मनुष्य आपना समझे बैठा है, वह संसार तो नश्वर है,नाशवान है | प्रभु के नाम को जाने बिना मनुष्य के लिए संसार की वस्तिकता को जानना असंभव है और उस नाम की प्राप्ति पूर्ण सत्गुरु के बिना संभव नहीं है | जिसने सत्य नाम को जाना है,उसी ने संसार में से किसी लाभ की प्राप्ति की है | जब मनुष्य के जीवन में पूर्ण सत्गुरु आता है वह उसे किसी बाहरी कर्म कांड में नहीं लगाता,वह उसी समय उस आदि नाम को अंतर में प्रकट कर देता है,मनुष्य उसी समय जोति स्वरूप परमात्मा का दर्शन अपने भीतर में करता है | इस लिए हमें भी चाहिए ऐसे संत की खोज करे | तभी हमारे जीवन में सदीवी सुख और शांति आ सकती है |
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