Wednesday, December 8, 2010

जब देखा तब गावा ॥तउ जन धीरजु पावा ॥



जब देखा तब गावा ॥तउ जन धीरजु पावा ॥१॥
 नादि समाइलो रे सतिगुरु भेटिले देवा ॥१॥ रहाउ ॥(Gurbani-656)

एक बार संत नामदेव जी प्रभु की चर्चा कर रहे थे | उनसे प्रभु की महिमा सुन कर संगत आनंद  ले रही थी | एक व्यक्ति ने खड़े होकर नामदेव जी से प्रशन  पूछा ? आप जिस सत्य की चर्चा  कर रहे हो ,क्या आप उसे जानते हो या केवल चर्चा तक  सीमत  हो ?
यह प्रशन उस व्यक्ति का नामदेव के प्रति नहीं वरन हम सब  का उन व्यक्तियों के प्रति होना चाहिए  | जो परमात्मा के विषय में केवल शोर मचाने तक ही सीमत  है | क्यों  कि जो स्वयं परमात्मा को नहीं जानते वह हमें परमात्मा के बारे में क्या जानकारी करा सकते हैं | हमें पूछना चाहिए ऐसे  व्यक्तियों से,जो पाठ के नाम पर आमुल्य धार्मिक ग्रंथों की वास्विकता को छुपाकर,केवल धन संचय करने में लगे हैं | क्या धार्मिक ग्रंथों को लिखने का यह  उदेश्य था कि आज हम धार्मिक ग्रंथों को उदर पूर्ती के लिए प्रयोग केवल रोजी-रोटी का साधन बना ले | क्या इस लिए संत महापुरषों और गुरुओं ने बलिदान दिए |जिस व्यक्ति ने नामदेव जी से प्रशन किया था वह वास्तव में खोजी था | इस लिए ऊस ने प्रशन  किया कि क्या आप ने उस प्रभु को देखा है | संत नामदेव जी मुस्कराते हुए जबाब देते हैं कि जब देखा है तभी  गा रहा हूँ | देखकर आर्थात जानकर गाने वाले के द्वारा ही लोग धैर्य पूर्वक ज्ञान की चर्चा का आनद लेकर शांति को प्राप्त कर सकते हैं, उस आवाज को पहचानोगे जो हमारे भीतर ही समाई है | उस के बाद ही संतों की वाणी समझ में आ सकती है | इस लिए सतगुरु की प्राप्ति करो ,जो हमारे जीवन में सत्यता को प्रकट कर सकता है | जिस प्रकार यदि गरीब व्यक्ति हाथ पर हाथ धरे बैठा रहे और धन की उची उची बातें करे | परन्तु केवल धन की चर्चा के द्वारा धन की प्राप्ति कैसे संभव है| इस लिए गुरबाणी में कहा गया -

हरि निरमलु अति ऊजला बिनु गुर पाइआ न जाइ ॥
पाठु पड़ै ना बूझई भेखी भरमि भुलाइ ॥ 
गुरमती हरि सदा पाइआ रसना हरि रसु समाइ ॥३॥(Gurbani - 66)

कहा कि प्रभु बहुत ही निर्मल और उज्ज्वल  है आर्थात प्रकाशवान है | परन्तु गुरु कि बिना प्राप्ति असंभव  है | कोंई पाठ पढ़  के परमात्मा के बारे में जानना चाहे तो  नहीं जान सकता  | गुरु के ज्ञान के द्वारा ही उस रस को जाना जा सकता है | जिस में सदा चिर स्थायी  सत्य छिपा है | तभी वह हमें सदैव प्राप्त रहेगा जब हम उसे जान लेंगें | इस लिए हमें भी चाहिए हम इसे पूर्ण संत की खोज करें जो हमें उस परमात्मा का दर्शन करवा दे | तभी हमारा जीवन सार्थक होगा |




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