पसू परेत मुगध कउ तारे पाहन पारि उतारै ॥(Gurbani - 802)
श्री गुरु अर्जुन देव जी कहते हैं कि पशु,प्रेत,मूर्ख और पत्थर का भी सत्संग के माध्यम से कल्याण हो जाता है | श्री मदभागवत पुराण में एक कथा आती है गोकर्ण के भाई धुन्धकारी को बुरे कर्मों के कारण प्रेत योनि की प्राप्ति हुई | जब गोकर्ण ने उसको प्रभु की कथा सुनाई तो वह प्रेत योनि से मुकत हो गया | इस लिए गोस्वामी तुलसी दास जी ने कहा कि संत महापुरषों की संगत आनंद देने वाली है और कल्याण करती है | सत्संग की प्राप्ति होना फल है,बाकी सभी कर्म फूल की भांति है | जैसे एक पेड़ पर लगा हुआ फूल देखने में तो सुन्दर लगता है किन्तु वास्तव में रस तो फूल के फल में परिवर्तित हो जाने के बाद ही मिलता है | सत्संग को आनंद और कल्याण का मूल कहा गया | जिस के जीवन में सत्संग नहीं,उस के जीवन में सुख सदैव नहीं रह सकता | आत्मिक रस तो महापुरषों की संगति से ही प्राप्त हो सकता है | इस लिए कबीर जी कहते हैं -
कबीर साकत संगु न कीजीऐ दूरहि जाईऐ भागि ॥
बासनु कारो परसीऐ तउ कछु लागै दागु ॥१३१॥(Gurbani - 1371)
दुष्टों का संग कभी भूल कर भी न करो | यह मानव के पतन का कारण बनता है | जैसे कोयले की खान में जाने पर कालिख लग ही जाती है | दुष्ट और सज्जन देखने में एक ही जैसे लगते हैं परन्तु फल से पता चल जाता है कि दुष्टों का संग अशांति देता है और सज्जनों का संग शांति |
जो दुष्ट हैं,वो भी जब संत महापुरषों जैसे वस्त्र धारण कर लेते हैं सब लोग उन को को संत समझकर उन का सम्मान करते है| संत की पहचान उसके भगवे वस्त्र नहीं है,भगवे वस्त्र में तो रावण भी आया था जो सीता माता को चुरा कर ले गया | संत की पहचान उस का ज्ञान है,जो संत हमें उसी समय हमारे अंतर में परमात्मा का दर्शन करवा दे,वह पूर्ण है,अगर वो हमें किसी बाहरी कर्म कांड में लगाता है,इस का मतलब है वह अधूरा है,ऐसे संतों से हमें सावधान रहना चाहिए.ये बात हमारे सभी धार्मिक शास्त्र कहते हैं| इस लिए हमें भी ऐसे पूर्ण संत की खोज करनी चाहिए,जो उसी समय परमात्मा का दर्शन करवा दे ,तभी हमारे जीवन का कल्याण संभव है |
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