आग लगी आकाश में झर-झर गिरे अंगार |
संत न होते जगत में तो जल मरता संसार ||
एस जगत की स्थिरता का मुख्य कारण संत महापुरश ही हैं यह तो ठीक ही है कि स्वांस चलने का हमें एहसास नहीं होता | परन्तु जब सर्दी जुकाम हो जाता है | छाती में कफ जम जाता है | तभी हमें स्वांस की कीमत का पता चलता है और हम डाक्टर के पास इलाज के लिए भागते हैं | ऐसा नहीं है कि संसार में आज सतगुरु नहीं है | नकली नोट बाजार में तभी चल सकते हैं यदि असली नोट है | अगर सरकार असली नोट बंद कर दे तो नकली नोट कैसे चल सकते हैं | आज मार्किट में नकली वस्तुए बहुत आसानी से सस्ते दामों में प्राप्त हो सकती है | परन्तु असली वास्तु की पहचान हो जाने पर नकली की कोई कीमत नहीं रह जाती | इस प्रकार हमें जरूरत है सच्चे सतगुरु की शरण में जाने की | जब तक सतगुरु की प्राप्ति नहीं होती,तब तक जीवन का कल्याण असंभव है | उससे पहले हम आध्यात्मिक शेत्र में प्रगति नहीं कर सकते |
जानना तो यह जरूरी है कि हमें किस प्रकार गुरु की प्राप्ति हो सकती है | आज का मानव यह तो सरलता से कह देता है कि गुरु कि बिना कल्याण नहीं है,इस लिए हम ने तो गुरु धारण कर लिया | हम ने गुरु मन्त्र लिया और खूब भजन सुमरिन करते हैं | परन्तु जब यह पूछा जाता है कि मन को शांति मिली ? क्या जीवन का रहस्य को जाना ? तब जबाब मिलता है कि यह तो बहुत मुश्किल है,मन अभी कहाँ टिका | ज्ञान तो ले लिया,परन्तु न तो मन को स्थिरता मिल पाई और न ही मन को स्थिर करने का स्थान ही पता चल पाया और न ही जीवन के कल्याण के मार्ग को जाना | विचार करना है कि गुरु क्यों धारण किया ? गुरु का कार्य हमें जीवन के रहस्य को समझाना है | जब कि आज मनुष्य ने गुरु मन्त्र को एक खिलौना बना लिया | बहुत गर्व से कहते हैं कि हम ने तो गुरु किया है | परन्तु यह पता नहीं है कि गुरु किसे कहते हैं ? केवल रटने के लिए कुछ शब्दों का अभ्यास करवा देने वाले को गुरु नहीं कहा जा सकता | यदि शस्त्रों में लिखित मन्त्रों को ही गुरु पर्दान करता है तो गुरु की क्या जरूरत है | वह तो स्वयं भी पड़ सकते हैं | एस लिए कहा है -
कोटि नाम संसार में तातें मुकित न होए |
आदि नाम जो गुप्त जपें बुझे बिरला कोई ||
कबीर जी कहते हैं कि संसार में परमात्मा के करोड़ों नाम है परन्तु उनको जपने से मुकित नहीं हो सकती | जानना है तो उस नाम को जो आदि कल से चला आ रहा है | अत्यंत गोपनीय है,मनुष्य के अंतर में ही चल रहा है | कण-कण में विधमान है | जब जीवन में पूर्ण गुरु आता है वह कोई शब्द नहीं देता ,वह उस आदि नाम को हमारे अंतर ही प्रकट कर देता है.इस लिए हमें भी चाहिए ऐसे पूर्ण संत की खोज करें ,जब आप खोज करोगे तो आप को ऐसा संत मिल भी जायेगा | उस के बाद ही हमारी भक्ति की यात्रा की शुरुआत होगी |
Dhan dhan satguruji
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