काहे रे बन खोजन जाई ॥
सरब निवासी सदा अलेपा तोही संगि समाई ॥१ ॥रहाउ ॥
पुहप मधि जिउ बासु बसतु है मुकर माहि जैसे छाई ॥
तैसे ही हरि बसे निरंतरि घट ही खोजहु भाई ॥१
बाहरि भीतरि एको जानहु इहु गुर गिआनु बताई ॥
जन नानक बिनु आपा चीनै मिटै न भ्रम की काई ॥२॥१॥(Gurbani - 684)
श्री गुरु तेग बहादुर जी महाराज कहते हैं,हे मानव ! तुझे प्रभु की खोज के लिए जंगलों में भटकने की क्या आवश्कता है | वह तो सभी में निवास करता हुआ भी सदा निर्लिप्त है | जिस तरह फूलों में सुगन्धि एवं दर्पण में हमारी परछाई छिपी है | उसी प्रकार वह परमात्मा भी तुमारे संग,तुमारे ही अंतर में छिपा हुआ है | उस परमात्मा की खोज भी अपने अंतर में ही करो | जो कुछ भी वाहरी जगत में देखते हैं , जो आनंद हमें भोतिक जगत में प्राप्त होता है उसका वास्तविक रूप तो हमारे ही आंतरिक जगत में छिपा हुआ है | परन्तु यह हमें गुरु से ज्ञान प्राप्ति के पछ्चात ही पता चलता है | जब तक हम स्वयं को नहीं पहचानते के हम कौन हैं ? हमारा वास्तविक स्वरूप क्या है ? तब तक हमारे संशयों का नाश नहीं हो सकता | परन्तु यह सब गुरु के बिना संभव नहीं |
गुर बिनु घोरु अंधारु गुरू बिनु समझ न आवै ॥
गुर बिनु सुरति न सिधि गुरू बिनु मुकति न पावै ॥(Gurbani - 1399)
श्री गुरु राम दास जी कहते हैं कि गुरु के बिना अंधेरा है | गुरु के बिना न हमें सत्य की समझ ही आ सकती है और न ही चित को स्थिर कर किसी प्राप्ति को ही सिद्ध कर सकते हैं | न ही मुक्ति की प्राप्ति हो सकती है| आज मनुष का जीवन घने अंधकार से ग्रसित है और गुरु की प्राप्ति के बिना क्या स्थिति होती है|
जिना सतिगुरु पुरखु न भेटिओ से भागहीण वसि काल ॥
ओइ फिरि फिरि जोनि भवाईअहि विचि विसटा करि विकराल ॥(Gurbani - 40)
जिस व्यक्ति ने सतगुरु पुर्ष की प्राप्ति नहीं की | वह भाग्यहीन समय के बंधन में फंस जाते हैं | उन्हें जन्म-मरण के भयानक कष्ट को भोगना पढ़ता है | आवागमन की विष्ट रुपी गंदगी के कष्टों को झेलना पढ़ता है| एस लिए हमें भी चाहिए कि हम ऐसे पूर्ण संत की खोज करे,जो उसी समय हमारे घट में ईश्वर का दर्शन करवा दे तभी हमारा जीवन सार्थक होगा.|
That's more
ReplyDeleteTranslate utna karo jitna kabita ka arth ho...
I don't know
DeleteThanks a lot
ReplyDeletePranaam!! Thank you!!
ReplyDeleteMy Nani used to sing the 1st one and i just knew the 1st line. I am glad you put this here and I googled.
Sat Sri Akal
very very thankyou
ReplyDeleteThank you so much
ReplyDeleteGood I am looking for that only
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ReplyDeleteकाहे रे बन खोजन जाई ॥
सरब निवासी सदा अलेपा तोही संगि समाई ॥१ ॥रहाउ ॥
पुहप मधि जिउ बासु बसतु है मुकर माहि जैसे छाई ॥
तैसे ही हरि बसे निरंतरि घट ही खोजहु भाई ॥१
बाहरि भीतरि एको जानहु इहु गुर गिआनु बताई ॥
जन नानक बिनु आपा चीनै मिटै न भ्रम की काई ॥२॥१॥(Gurbani - 684)
श्री गुरु तेग बहादुर जी महाराज कहते हैं,हे मानव ! तुझे प्रभु की खोज के लिए जंगलों में भटकने की क्या आवश्कता है | वह तो सभी में निवास करता हुआ भी सदा निर्लिप्त है | जिस तरह फूलों में सुगन्धि एवं दर्पण में हमारी परछाई छिपी है | उसी प्रकार वह परमात्मा भी तुमारे संग,तुमारे ही अंतर में छिपा हुआ है | उस परमात्मा की खोज भी अपने अंतर में ही करो | जो कुछ भी वाहरी जगत में देखते हैं , जो आनंद हमें भोतिक जगत में प्राप्त होता है उसका वास्तविक रूप तो हमारे ही आंतरिक जगत में छिपा हुआ है | परन्तु यह हमें गुरु से ज्ञान प्राप्ति के पछ्चात ही पता चलता है | जब तक हम स्वयं को नहीं पहचानते के हम कौन हैं ? हमारा वास्तविक स्वरूप क्या है ? तब तक हमारे संशयों का नाश नहीं हो सकता | परन्तु यह सब गुरु के बिना संभव नहीं |
गुरु महाराज जी समझा रहें हैं कि जिस परमात्मा को अन्यत्र यहां वहां ढूंढ रहे हो वो तुम्हारे अंदर विराजमान है और गुरु कृपा से उस रहस्य को जान सकते हो । तो जरूरत है सच्चे सतगुरू की को क्षण भर में को उस अलख की लखता करा दे । इस रहस्य को जान लेने के बाद के बाद कुछ जानना शेष नहीं रह जाता जिन्होंने इस भेद को गुरु कृपा से जान लिया वे जीते जी मुक्त हो जाते है ।
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