Wednesday, December 8, 2010

खरी कसौटी राम की काँचा टिकै न कोय



खरी कसौटी  राम की काँचा टिकै न कोय 
गुरु खरी कसौटी  के आधार पर शिष्य को परखते हैं ,कहीं मेरे शिष्य का  शिष्यत्व कच्चा तो नहीं है | ठीक एक कुम्हार की तरह ! जब कुम्हार कोई घडा बनाता  है ,तो उसे बार-बार बजाकर भी देखता है - ' टन!टन!' वह परखता है कि कहीं मेरा घड़ा कच्चा तो नहीं रह गया | इस में कोई खोट तो नहीं है |
ठीक इसी प्रकार गुरु भी अपने शिष्य को परीक्षाओं  के द्वारा ठोक-बजाकर देखते हैं | शिष्य के विश्वास ,प्रेम,धेर्य ,समर्पण,त्याग को परखते हैं|वे देखते हैं कि शिष्य कि इन भूषनो में कहीं कोई दूषण तो नहीं ! कहीं आंह की हलकी सी भी कालिमा तो इसके चित पर नहीं छाई हुई ? यह अपनी मन-मति को बिसारकर,पूर्णता समर्पित हो चूका है क्या ?
क्यों कि जब तक स्वर्ण में  मिटटी का अंश मात्र भी है,उससे आभूषण नहीं गढ़े  जा सकते | मैले दागदार वस्त्रों पर कभी रंग नहीं चढ़ता | उसी तरह,जब तक शिष्य में जरा सा भी अहम्,स्वार्थ,अविश्वास या और कोई  दुर्गुण है,तब तक वह अध्यात्म के  शिखरों को नहीं छू सकता | उसकी जीवन - सरिता परमात्म रुपी सागर में नहीं समां सकती |
यही कारण है कि गुरु समय समय पर शिष्यों की  परीक्षाएं लेते  हैं | कठोर न होते हुए भी कठोर दिखने की लीला करते हैं | कभी हमें कठिन आज्ञें  देते हैं ,तो कभी हमारे आसपास प्रतिकूल परिस्थियाँ पैदा करते हैं | क्यों कि अनुकूल परिस्थियाँ   में हर कोई शिष्य होने का दावा करता  है | जब सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा होता है,तो हर कोई  गुरु-चरणों  में श्रद्धा-विश्वास के फूल आर्पित करता है |
कौन सच्चा प्रेमी है ? इस की पहचान तो विकट परिस्थियाँ में  ही होती है | क्यों कि जरा-सी विरोधी व् प्रतिकूल परिस्थिया आई नहीं कि हमारा सारा स्नेह ,श्रद्धा और विश्वास बिखरने लगता है |शिष्त्यव डगमगाने लगता है |
जब श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने शिष्यों को कसौटी  पर कसा,तो हजारों के झुण्ड में से सिर्फ पांच  पियारे ही निकले | इस  लिए सच्चा शिष्य तो वही है ,जो गुरु की कठिन आज्ञा  को भी शिरोधार्य करने का दम रखता है | चाहे कोई भी परिस्थिति  हो ,उसका विश्वास,उसकी प्रीत गुरु -चरणों में अडिग रहती है | सच! शिष्य का विश्वास चट्टान की तरह मजबूत होना चाहिए | वह विश्वास नही  जो जरा-सी विरोध  की आँधियों में डगमगा जाए !!
गुरु की परीक्षाओं के साथ  एक और महत्त्वपूर्ण तथ्य जुड़ा है | वह यह कि परीक्षाएं शिष्य  को केवल परखने के लिए ही नहीं,निखारने के लिए भी होती है |गुरु की परीक्षा एक ऐसी कसौटी है,जो शिष्य के सभी दोष-दुर्गुणों को दूर कर देती है |  परीक्षाओं की अग्नि में तपकर जी एक शिष्य कुंदन बन पाता है | कहने का आशय कि गुरु की परीक्षाएं  शिष्यों के हित के लिए ही होती है | परीक्षायों  के कठिन दौर बहुत कुछ सिखा जाते हैं | याद रखें ,सबसे तेज आंच में तपने वाला लोहा ही,सबसे से बड़ा इस्पात बनता है |
इस लिए एक शिष्य के हिरदे में सदैव यही प्राथना के  स्वर गूजने चाहिए - 'हे गुरुवार,मुझ में वह सामर्थ्य  नहीं कि आपकी कसौटियां पर खरा उतर सकू | आपकी परीक्षाओं  में उतीर्ण  हो सकू | पर आप अपनी कृपा का हाथ सदा मेरे मस्तक पर रखना | मुझे इतनी शक्ति देना कि मैं हर परिस्थिति  में इस मार्ग पर अडिग  होकर चल पाऊँ | मुझे ऐसी भक्ति देना कि आपकी कठिन से कठिन आज्ञा को  भी पूर्ण समर्पण के साथ शिरोधार्य  सकूँ|




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