Wednesday, December 8, 2010

आए जगत में क्या किया तन पाला के पेट |



आए जगत में क्या किया तन पाला के पेट |
सहजो दिन धंधे गया रैन गई सुख लेट ||

संत सहजो बाई जी कहती हैं कि जगत में जन्म तो ले लिया परन्तु किया क्या ? तन को पाला या खा-खा कर पेट को बढाया | दिन तो संसार के कार्यों में गँवा दिया और रात सो कर गँवा  दी |

रैणि गवाई सोइ कै दिवसु गवाइआ खाइ ॥ 
हीरे जैसा जनमु है कउडी बदले जाइ ॥१॥(Gurbani-156)

श्री गुरु नानक देव जी कहते हैं कि रात सो कर गँवा  दी और दिन खा कर गँवा  दिया | हीरे जैसे जन्म को अर्थात्त तन को कौड़ी  के भाव गँवा दिया | इस जगत में मनुष्य  की यह स्थिति है कि उसने शरीर को तो जान लिया परन्तु जीवन को भूल गया | यह अहसास नहीं है कि जीवन क्या है ? आज हम जिसे जीवन कहते हैं,वह तो पल प्रतिपल मृत्यु की  और बढ रहा है | परन्तु यह 30-40  वर्ष का जीवन,जीवन नहीं है | हम अपना जन्म दिन मनाते है,हम इतने बड़े हो गए | हमारी आयु बढ़ी  नहीं , यह तो हमारे जीवन में से 30-40 वर्ष कम हो गए है,हम मृत्यु के निकट पहुँच रहे हैं | हमें विचार करना चाहिए के हम ने इतने वर्षों में क्या किया,क्या हम ने अपने जीवन के लकश  को जाना |
एक बार ईसा नदी के किनारे जा रहे थे,रस्ते में देखा कि  एक मछुआरा मछलियाँ पकड़ रहा था | उसके निकट गये उस से पूछते हैं,तुमारा नाम क्या है ? उसने कहा  पीटर ! ईसा ने पूछा के पीटर ,क्या तुमने जीवन को जाना ? क्या तुम जीवन को पहचानते  हो ? उसने कहा कई हाँ मैं जीवन को जानता  हूँ | मछलियाँ पकड़ता हूँ और बाजार में बेचकर अपने जीवन का निर्वाह करता हूँ |
ईसा ने कहा -पीटर ! यह जीवन,जीवन नहीं,जिसे तुम जीवन समझ रहे हो वह जीवन तो मृत्यु  की तरफ बढ रहा है | आओ मैं तुम्हे उस जीवन से मिला दूं ,जो  मृत्यु के बाद  भी रहता है | पीटर आश्चर्य से  कहता है कि  क्या मृत्यु  के बाद भी जीवन है | ईसा कहते हैं - हाँ पीटर ! मृत्यु के बाद  भी जीवन है ,इस जीवन का उदेश ही उस शश्वत जीवन को जानना है | अब  ईसा मसीह पीटर को जीवन से आवगत करने के लिए उसे अपने साथ लेकर चलते हैं | तभी कुछ  लोग आते हैं और पीटर से कहते हैं,पीटर! तुम कहाँ जा रहे हो? तुम्हारे  पिता का देहांत हो गया है | 
ईसा ने पूछा,पीटर कहाँ चले? पीटर ने कहा -"पिता को दफ़नाने,उन का देहांत हो गया है ,दफनाना जरूरी है |" तब ईसा ने कहा - Let the dead burry their deads."मुर्दे को मुर्दे दफ़नाने दो" तुम मेरे साथ चलो,मैं तुम्हे जिन्दगी से मिलाता हूँ  | ईसा के कहने के भाव से स्पष्ट होता है कि  जिन के ह्रदय में प्रभु के प्रति प्रेम नहीं,जिन्हों ने जीवन के वास्तविक लकश  को नहीं जाना वह जिन्दा नहीं,वरन  मरे हुए के सामान ही है | राम चरित मानस में भी कहा है -

जिन्ह हरि भगति ह्रदय नाहि आनी |
जीवत सव समान तई प्रानी ||

संत गोस्वामी तुलसी दास जी कहते है कि  जिसके ह्रदय में प्रभु की भक्ति  नहीं,वह जीवत प्राणी भी एक शव के समान ही है| इस लिए हमें भी चाहिए के हम ऐसे  पूर्ण संत की खोज करे,जो हमारे भीतर उसी वकत प्रभु का दर्शन करवा दे | तभी हम अपने जीवन के लकश को प्राप्त कर सकते हैं | तभी हमारा जीवन सफल हो सकता है |





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