Sunday, September 11, 2011

चिंता और चिंतन

एटम बमों, मिसाइलों और ध्वंसक हथियारों ने हवा में तैरती चिंता को जन्म दिया है | 'हवा में तैरती चिंता' - हमारे युग के डर को वर्णित करने का सटीक तरीका है | हम दरअसल यह जानते ही नहीं कि हम किस चीज से डरते हैं | आज ज्यादातर लोग एक अजीब से तनाव से ग्रस्त हैं | हम इतनी सारी चीजों से डरते हैं कि किसी एक चीज का वर्णन करना निर्थक लगता है | डर बादल की तरह मंडराता है और हमारे हर काम पर अपनी काली छाया डालता है | यह डर धुंधला और सर्वव्यापी है |

हमें विचारों के डर और दुविधा की धुंध से उपर उठना चाहिए | हमें चिंता और तनाव से उपर उठकर ऐसे स्तर पर पहुँचाना चाहिए, जहाँ हम स्पष्ट और तर्क संगत तरीके से सोच सकें | डर हमारी ख़ुशी का दुश्मन है | यह हमारी सोचने की क्षमता पर बुरा असर डालता है | इससे दिल का दोरा भी पड़ सकता है | जीवाणु और विषाणु तनाव ग्रस्त लोगों को आसानी से रोगी बना सकते हैं | लेकिन इससे दहशत में न आए | कारण कि डर पर विजय पाने की शक्ति आपमें है |

चिंता और डर से सीधा मुकाबला करने से कोई फायदा नहीं होता | अपने दिमाग में इतनी आस्था भर लें कि उसके तेज बहाव में डर भी बह जाए | ईश्वर की शक्ति आप के लिए वह काम करेगी, जो आप अपने लिए नहीं कर सकते | आपका काम उसकी शक्ति में विश्वास करना और उसके प्रति समर्पण करना है | उसकी जबरदस्त शक्ति के द्वारा आप डर से निजात पा सकते हैं | लेकिन सवाल यह है कि अपने मस्तिष्क में इतनी आस्था भरी कैसे जाए ?

'मैं अकेला नहीं हूँ, ईश्वर मेरे साथ है!' इस दृढ विश्वास को भीतर जन्म दें | दुनिया का कोई डर इस विचार से बड़ा नहीं है | ईश्वर सच में आपके साथ है | इसलिए उसकी उपस्थिति महसूस करने की कोशिश करें | ईश्वर की उपस्थिति आत्म-साक्षात्कार से अनुभव की जा सकती है | पूर्ण सतगुरू से ब्रह्मज्ञान प्राप्त करके ईश्वर का दर्शन करें | ब्रह्मज्ञान ईश्वर की उपस्थिति का प्रत्यक्ष अहसास कराने में पूर्ण सक्षम है | इस लिए ऐसे पूर्ण संत की खोज करे जो दीक्षा के समय परमात्मा का दर्शन करवा दे |

अगर कहीं भी आप को ऐसा संत नहीं मिलता,एक बार 'दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ' में जरूर पधारे | यहाँ आप सादर आमंत्रित है | आपको यहाँ अवश्य ही शुद्ध कुंदन सी चमक मिलेगी | यह अहंकार नहीं,गर्व है! बहकावा नहीं,दावा है ! जो एक नहीं, श्री आशुतोष महाराज जी के हर शिष्य के मुख पर सजा है -'हमने ईश्वरीय ज्योति अर्थात प्रकाश और अनंत अलोकिक नजारे देखे है | अपने अंतर्जगत में ! वो भी दीक्षा के समय | हम ने उस प्रभु का दर्शन किया है,और आप भी कर सकते हैं |

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