Sunday, September 11, 2011

मैं और मेरा लक्ष्य - दूसरा कोई नहीं!

आध्यात्मिक गुरु एक ही होते हैं | पर उपगुरु (शिक्षा गुरु) बहुत से हो सकते हैं | जैसे दत्तात्रेय जी ने 24 उपगुरु बनाए थे | .....एक दिन एक राह पर चलते - चलते दत्तात्रेय जी ने देखा कि सामने से पूरी सजबज और बैंड - बाजे के साथ एक बारात आ रही है | खूब धूम - धडाका हो रहा है | पर वहीं, उस सड़क के किनारे झाड़ियाँ की ओर तीर साधे एक शिकारी खड़ा है | उसकी दृष्टि अपलक, एकटक अपने शिकार पर गडी हुई है | न तो बारात की चकाचोंध ने उसका ध्यान बांटा और न उसके हंसी - ठट्ठे और शोर शराबे ने! शिकारी ने एक पल के लिए भी बारात की ओर मुड़कर नहीं देखा | एकचित होकर डटा रहा, अपने लक्ष्य पर! दत्तात्रेय जी ने उसे देखते ही प्रणाम किया, कहा -'आज से आप मेरे (उप) गुरु हैं | जब भी मैं ब्रह्मज्ञान  की साधना में बैठूँगा, तो आपकी प्रेरणा से अपने प्रभु, अपने लक्ष्य पर, इसी प्रकार एक - केन्द्रित होने की कोशिश करूंगा | इतना तन्मन्य की आसपास की माया या दुनिया के विचारों का मुझे भान ही न रहे!'

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