Sunday, September 11, 2011

आप कौन - सी श्रेणी के भक्त हैं ?

आज संसार में देखें, तो हर कोई किसी - न - किसी तरीके से भक्ति करता नजर आता है | कोई सकाम, कोई निष्काम | अधिकतर लोग सकाम भक्ति में संलग्न है | सकाम अर्थात वह भक्ति जो अपने मन के अनुसार किसी इच्छा पूर्ति के लिए की जाती है | वहीं निष्काम भक्ति वह है, जहाँ एक भक्त सभी सांसारिक कामनाओं से रहित होकर केवल ईश्वर प्राप्ति की इच्छा रखता है | श्रीमदभगवद गीता (7/16) में भगवान श्री कृषण कहते हैं -
चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन ।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ॥७-१६॥
अर्थात हे भारत श्रेष्ट अर्जुन! आर्त, अर्थार्थी, जिज्ञासु और ज्ञानी, ऐसे चार प्रकार के लोग मुझे भजते हैं |
आर्त भक्त कैसे होते हैं ? आइए पहले इनके विषय में जाने | आर्त का सामन्य अर्थ होता है - दुःख से पीड़ित व्यक्ति | अत: आर्त भक्त वे हैं, जो अपनी किसी दुख के  निवारण के लिए भक्ति करते हैं | ये प्रभु को पुकारते तो हैं | इनके भीतर भगवान की याद भी उमड़ती है | लेकिन कब ? तभी जब इन्हें कोई शारीरक या मानसिक कष्ट आ घेरता है |
अब दूसरे प्रकार के भक्त होते हैं - अर्थार्थी  | ये वे भक्त हैं जो सांसारिक पदार्थों की कामना के लिए भक्ति करते हैं | धन - वैभव, संतान आदि नियामतें पाने के लिए इबादत करते हैं | आज मंदिर, तीर्थ आदि धार्मिक स्थल क्षद्धालुओं से खचाखच  भरे दिखाई देते हैं | भक्तजन  बढ - चढ़कर पूजा अर्चना करते हैं | लेकिन किस भाव से ? यही कि बदले में अमुक सांसारिक वास्तु मिल जाए  | फलं विगडा काम बन जाए  | कोई मन्नत  या मांग पूर्ण हो जाए | पर महापुरष कहते हैं कि यह मांगना  ही भक्ति मार्ग में सबसे बड़ी बाधक है | जब किसी हेतु से भक्ति की जाती है, तो वह भक्ति नहीं व्यापार बन जाती है |
इबादत करते हैं जो लोग जन्नत की तमन्ना में,
वह इबादत नहीं, एक तरह की तिजारत है ||
तिजारत कहते हैं सोदेबाजी को | आज मनुष्य भक्ति के क्षेत्र में भी ऐसा ही व्यापारी बन गया है | अपनी कुछ क्षण की पूजा आराधना  के बदले में उस करतार से सांसारिक पदार्थ चाहता है | ये सभी पदार्थ क्षणभुंगर और नश्वर हैं | दूसरा ये आनंद तो क्या, सच्चा सुख नहीं दे सकते | यूं तो अमरीका सर्वाधिक धनी देश है | फिर भी वहां के नागरिक घोर अशांति से पीड़ित हैं |सूचना के मुताबिक वहां हर दसवां इन्सान तनावग्रस्त है |
तीसरे प्रकार के भक्त जिज्ञासु प्रविर्ती के होते हैं | इनमें ईश्वर को जानने की तीव्र ललक होती है | इस कारण ये शास्त्र ग्रंथों का गहन अध्ययन  व् रटन करते हैं | पोथी पंडित बन जाते हैं | फलस्वरूप इनका बोधिक विकास तो हो जाता है | ये शास्त्रर्थ करने में निपुण हो जाते हैं | परन्तु आत्मिक लाभ नहीं उठा पाते |
चोथी श्रेणी ज्ञानी भक्तों की है | ये वे भक्त हैं, जो ब्रह्मज्ञान से दीक्षित हैं | ये शाब्दिक जानकारियों, शास्त्रों की कथा - कहानियों में नहीं उलझते | अपितु एक पूर्ण सतगुरू की शरणागत होकर ईश्वर का प्रत्यक्ष  दर्शन कर लेते हैं | लेकिन ऐसा नहीं इनके जीवन में कोई सांसारिक अभाव नहीं होता | लेकिन ये उस अभाव की पूर्ति के लिए ईश्वर से कभी गुहार नहीं करते | प्रभु से केवल प्रभु को मांगते हैं | उसके अतिरिक्त किसी की कामना नहीं करते | इन भक्तों के विषय में ही भगवान श्री कृषण ने निम्न श्लोक में कहा -
तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते ।
प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः ॥७-१७॥
अर्थात इन चार प्रकार के भक्तों में, परमात्मा के साथ नित्ययुक्त अनन्य प्रेम करने वाला ज्ञानी विशेष है, क्यों कि ज्ञानी के लिए मैं अत्यंत प्रिय हूँ, तथा मेरे लिए वह अत्यंत प्रिय है |
अत: सत्संग प्रेमियों, हम सब भी ज्ञानी भक्तों की श्रेणी में आने का प्रयास करें | आज चाहे हम आर्त, अर्थार्थी, जिज्ञासु किसी भी श्रेणी में खड़े हों, पूर्ण संत की खोज कर ईश्वर का दर्शन करें | ज्ञानी बनें | तभी हम अपने मानव जीवन के लक्ष्य को पूर्ण कर पाएँगे |

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