Sunday, September 11, 2011

सभी को श्री गुरू रविदास महाराज जी के प्रकाश उत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं

जल की भीति पवन का थ्मभा रकत बुंद का गारा ॥ 
 हाड मास नाड़ीं को पिंजरु पंखी बसै बिचारा ॥१॥ 
प्रानी किआ मेरा किआ तेरा ॥ 
जैसे तरवर पंखि बसेरा ॥१॥ रहाउ ॥ 
राखहु कंध उसारहु नीवां ॥  
साढे तीनि हाथ तेरी सीवां ॥२॥ 
बंके बाल पाग सिरि डेरी ॥ 
इहु तनु होइगो भसम की ढेरी ॥३॥ 
ऊचे मंदर सुंदर नारी ॥ 
राम नाम बिनु बाजी हारी ॥४॥ 
मेरी जाति कमीनी पांति कमीनी ओछा जनमु हमारा ॥ 
तुम सरनागति राजा राम चंद कहि रविदास चमारा ॥५॥६॥ (Gurbani - 659) 


श्री गुरू रविदास महाराज जी कहते हैं कि जल की दीवार, हवा का खम्बा तथा रकत और वीर्य का गिलावा - इस प्रकार यह हाड़, मांस और नाड़ियों का पिंजरा बना हुआ है जिसमें बेचारी आत्मा रुपी चिड़िया निवास करती है | ऐ जीव! इस संसार में भला क्या हमारा है और क्या तुम्हारा है? जैसे पक्षी रात में किसी वृक्ष  पर बसेरा लेते हैं, उसी तरह हम कुछ समय के लिए इस संसार में इकट्ठा हुए हैं | हम महल बनाने के लिए नीव खोदते हैं और ऊँची-ऊँची दीवार खड़ी करते हैं, पर आखिर साढ़े तीन हाथ ही हमारे शरीर की सीमा है | हम बहुत बन - ठन कर अपने केश सवारते हैं और सिर पर टेडी पाग बाँधते हैं, पर यह शरीर अंत में जल कर राख की ढेर बन जाता है | हम कितने ही ऊँचे महल में क्यों न रहते हों और हमारी स्त्री कितनी ही सुन्दर क्यों न हो, पर परमात्मा के नाम के बिना हम जिन्दगी की बाजी हार जाते हैं | श्री गुरू रविदास महाराज जी कहते हैं कि भले ही मेरी जाति-पाति नीची है और मैंने एक छोटे कुल में जन्म लिया है, पर मैंने परम प्रभु परमात्मा की शरणागति प्राप्त कर ली है और इस प्रकार मैंने अपना जीवन सफल कर लिया है | अगर आप भी जीवन का कल्याण करना चाहते हो आप को भी पूर्ण सतगुरू की शरण में जाना होगा जो दीक्षा के समय परमात्मा का दर्शन करवा दे | हमारा प्रकाश उत्सव मनाना तभी सार्थक हो सकता है, अगर हम श्री गुरू रविदास महाराज जी के उपदेश को जीवन में धारण करें |

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