बाणी बिरलउ बीचारसी जे को गुरमुखि होइ ॥
इह बाणी महा पुरख की निज घरि वासा होइ ॥४०॥ (Gurbani - 935)
श्री गुरू नानक देव जी कहते हैं कि बाणी को कोई विरला ही समझ सकेगा | वह विरला वही होगा, जो पूर्ण गुरू की शरण प्राप्त करेगा | कहने का भाव कि शास्त्र -ग्रंथों को समझने के लिए हमें एक पूर्ण सदगुरू की आवश्कयता है | धार्मिक शास्त्रों से जो हम लाभ नहीं उठा पाते, उसका मुख्य कारण है हम उनमें निहित शिक्षाओं को धारण नहीं करते | केवल पाठ करने तक, रट्टू तोते की तरह रटने तक सिमित रह जाते हैं | शास्त्र पढ़ लेने मात्र से कोई विद्वान नहीं बन सकता | विद्वान केवल वही है, जिसने शास्त्र के अनुसार कर्म भी किया हो और उसे व्यवहार में भी लाया
हो | केवल ओषिध का नाम लेने मात्र से ही रोग का दूर हो जाना संभव नहीं, जब तक कि ओषिध खाई न जाए | अन्यत्र कहा गया -
चार अठारह नौ पढ़े षट पढ़ खोया मूल |
सूरत शब्द चीन्हे बिना ज्यों पंछी चन्डूल ||
चारों वेद, अठारह पुराण, नौ व्याकरण, छ: शास्त्र भी पढ़ लिए, लेकिन यदि उनके मूल को खो दिया यानी सच्चे शब्द को नहीं जाना, उस परम सत्य का साक्षात्कार नहीं किया, तो स्थिति केवल चन्डूल पक्षी की तरह ही है | चन्डूल पक्षी जिस पक्षी की आवाज को सुनता है, वही बोलने लग जाता है | इस प्रकार उसकी स्वयं की कोई भी आवाज नहीं रहती | ऐसी ही स्थिति उन मनुष्यों की है, जो शास्त्रों को केवल पढने तक सिमित हैं | बिना मर्म को धारण किए केवल रटने से भी अपने अस्तित्व को खो बैठते हैं | अपनी वास्तविक पहचान, अपनी आत्मा से कोसों दूर हो जाते हैं | इस लिए विवेकी पुरषों ने यही कहा - पढ़िए नाही भेद बुझीए पावना - केवल पढने तक सिमित नहीं रहना, वर्ण उस प्रभु का बोध कर अर्थात उसका साक्षात्कार कर उसे प्राप्त भी करना है | ईश्वर का यह बोध, ईश्वर का प्रत्यक्ष दर्शन केवल और केवल पूर्ण गुरू ही करा सकते हैं | हरि निरमलु अति ऊजला बिनु गुर पाइआ न जाए - निर्मल, उज्जवल अर्थात प्रकाशवान प्रभू की प्राप्ति गुरू के बिना संभव नहीं |
अंत में यही कहूँगा कि शास्त्र-ग्रंथों को अवश्य पढ़िए | पर पढने तक सिमित न रहें | उनमें जो पूर्ण गुरू की कसोटी दी गई है, उसके के आधार पर सदगुरू की खोज करें | पूर्ण गुरू से भेंट होने पर उनसे ब्रह्मज्ञान की दीक्षा लें और अपने अंत:करण में ईश्वर का दर्शन करें | फिर साधना के पथ पर चलकर प्रभु को प्राप्त कर जीवन का कल्याण करें | सारत: शास्त्रों की शिक्षा की सार्थकता गुरू की दीक्षा मिलने पर ही होती है |
इह बाणी महा पुरख की निज घरि वासा होइ ॥४०॥ (Gurbani - 935)
श्री गुरू नानक देव जी कहते हैं कि बाणी को कोई विरला ही समझ सकेगा | वह विरला वही होगा, जो पूर्ण गुरू की शरण प्राप्त करेगा | कहने का भाव कि शास्त्र -ग्रंथों को समझने के लिए हमें एक पूर्ण सदगुरू की आवश्कयता है | धार्मिक शास्त्रों से जो हम लाभ नहीं उठा पाते, उसका मुख्य कारण है हम उनमें निहित शिक्षाओं को धारण नहीं करते | केवल पाठ करने तक, रट्टू तोते की तरह रटने तक सिमित रह जाते हैं | शास्त्र पढ़ लेने मात्र से कोई विद्वान नहीं बन सकता | विद्वान केवल वही है, जिसने शास्त्र के अनुसार कर्म भी किया हो और उसे व्यवहार में भी लाया
हो | केवल ओषिध का नाम लेने मात्र से ही रोग का दूर हो जाना संभव नहीं, जब तक कि ओषिध खाई न जाए | अन्यत्र कहा गया -
चार अठारह नौ पढ़े षट पढ़ खोया मूल |
सूरत शब्द चीन्हे बिना ज्यों पंछी चन्डूल ||
चारों वेद, अठारह पुराण, नौ व्याकरण, छ: शास्त्र भी पढ़ लिए, लेकिन यदि उनके मूल को खो दिया यानी सच्चे शब्द को नहीं जाना, उस परम सत्य का साक्षात्कार नहीं किया, तो स्थिति केवल चन्डूल पक्षी की तरह ही है | चन्डूल पक्षी जिस पक्षी की आवाज को सुनता है, वही बोलने लग जाता है | इस प्रकार उसकी स्वयं की कोई भी आवाज नहीं रहती | ऐसी ही स्थिति उन मनुष्यों की है, जो शास्त्रों को केवल पढने तक सिमित हैं | बिना मर्म को धारण किए केवल रटने से भी अपने अस्तित्व को खो बैठते हैं | अपनी वास्तविक पहचान, अपनी आत्मा से कोसों दूर हो जाते हैं | इस लिए विवेकी पुरषों ने यही कहा - पढ़िए नाही भेद बुझीए पावना - केवल पढने तक सिमित नहीं रहना, वर्ण उस प्रभु का बोध कर अर्थात उसका साक्षात्कार कर उसे प्राप्त भी करना है | ईश्वर का यह बोध, ईश्वर का प्रत्यक्ष दर्शन केवल और केवल पूर्ण गुरू ही करा सकते हैं | हरि निरमलु अति ऊजला बिनु गुर पाइआ न जाए - निर्मल, उज्जवल अर्थात प्रकाशवान प्रभू की प्राप्ति गुरू के बिना संभव नहीं |
अंत में यही कहूँगा कि शास्त्र-ग्रंथों को अवश्य पढ़िए | पर पढने तक सिमित न रहें | उनमें जो पूर्ण गुरू की कसोटी दी गई है, उसके के आधार पर सदगुरू की खोज करें | पूर्ण गुरू से भेंट होने पर उनसे ब्रह्मज्ञान की दीक्षा लें और अपने अंत:करण में ईश्वर का दर्शन करें | फिर साधना के पथ पर चलकर प्रभु को प्राप्त कर जीवन का कल्याण करें | सारत: शास्त्रों की शिक्षा की सार्थकता गुरू की दीक्षा मिलने पर ही होती है |
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