Sunday, September 11, 2011

जो परमात्मा का दर्शन करवा दे वही पूर्ण सतगुरू है

आज के समाज में धार्मिक गुरुओं की कोई कमी नहीं है, इन्सान जब ऐसे गुरूओं को शरण में जाता है, तो सब के अपने - अपने परमात्मा की भक्ति के मार्ग हैं, वो उलझ जाता है, कौन सा मार्ग सही है | ऐसा ही प्रशन एक वार एक व्यक्ति ने गुरूदेव सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के समक्ष्य रखा |
प्रशन: महाराज जी,यहाँ आने से पहले मैं अनेक गुरूओं के पास गया | सब के समक्ष्य अपनी यह जिज्ञासा रखी कि आप मुझे परमात्मा का दर्शन करा दीजिए | पर सभी ने एक ही उत्तर दिया कि परमात्मा का दर्शन करना इतना सहज नहीं है | पहले स्वयं को पात्र बनाओ | अपने भीतर सदगुणों का विकास करो | दान - पुण्य के द्वारा स्वयं को निर्मल - पवित्र  करो | तपस्या करो | तब कहीं जाकर तुम परमात्म - दर्शन के अधिकारी बनोगे | पर आपने अभी अपने प्रवचनों में कहा कि परमात्म - दर्शन भक्ति मार्ग का पहला चरण है | दर्शन होने के बाद ही भक्ति शुरू होती है | मैं तो उलझ गया हूँ | कृपया मेरा मार्ग दर्शन करें |
उत्तर: आप पात्र हैं | परमात्म-दर्शन के अधिकारी हैं, क्यों कि आपके पास मानव तन है | शास्त्रों में कहा गया - 'भई परापति मानुख देहुरीआ  गोबिंद मिलण की इह तेरी बरीआ |'  हे जीव, यह तेरी गोबिंद से, परमात्मा से मिलने की बारी है, क्यों कि तुझे मनुष्य की देह प्राप्त हुई है | इसके आलावा और कोई शर्त नहीं रखी गयी | दूसरा आपमें तो जिज्ञासा भी है | यदि अब भी कोई कहता है कि आप परमात्म - दर्शन के पात्र नहीं, तो वह गलत कहता है | आप को भ्रमित कर रहा है |
आपने वह कहावत तो सुनी होगी - 'न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी |' एक बार किसी ने राधा से कहा - आप नाच कर दिखाइए | राधा ने एक शर्त रख दी-पहले नौ मन तेल लाओ | फिर नाचूंगी | और हम सब जानते हैं कि न कभी नौ मन तेल एकत्र  हुआ, न कभी राधा नाची | बस तभी से यह कहावत प्रचलित हो गई | इसी प्रकार परमात्म-दर्शन के बिना वास्तविक ज्ञान, तप, दान आदि को समझा ही नहीं जा सकता | और न ही स्व - प्रयासों द्वारा व्यक्ति में कभी सदगुण आ सकते हैं | इस हिसाब से वह कभी पात्र बनेगा ही नहीं | यह बात तथाकथित गुरू भी जानते हैं | इस लिए वे ऐसी असाध्य शर्त रख देते हैं | यही सोचकर कि न यह अनुगामी एक निर्मल - सदगुणी पात्र या अधिकारी बनेगा और न ही उनसे परमात्म - दर्शन करवाने की आशा करेगा |
वस्तुत: हकीकत तो यह है कि वे स्वयं अज्ञानी हैं, अपूर्ण हैं | उनके पास ज्ञान कुंजी है ही नहीं, जिसके  द्वारा वह आपका दसवां द्वार खोलकर आपके भीतरी जगत में प्रवेश करा सकें | उनके पास वह ब्रह्मज्ञान ही नहीं, जिस  के द्वारा वे आपके अंतस में प्रकाश प्रकट कर सकें | आपको परमात्मा का साक्षात्कार करा सकें |
दूसरा यदि वे यह कहतें हैं कि परमात्मा का दर्शन दान, तपस्या या अन्य ब्रह्म कर्म - काण्ड करने के पछ्चात ही संभव है, तो उनसे प्रशन कीजिए कि - यदि ऐसा है, तो फिर स्वयं भगवन श्री कृषण ने गीता के 11 वें अध्याय के 53 वें श्लोक में यह क्यों कहा -
हे अर्जुन न वेदों से, न तप से, न दान से और न यज्ञ से  ही मैं इस प्रकार देखा जा सकता हूँ, जैसा तुमने मुझे देखा है |
सारत: आपके पास मानव तन है | आपमें जिज्ञासा है | बस यदि आपको अब आवश्कयता है, तो एक पूर्ण गुरू की | आपका पात्र भरने की शमता रखने वाला एक ब्रह्मज्ञानी की | अत: आप एक पूर्ण ब्रह्मनिष्ट सतगुरू की खोज करें | उनके सान्निध्य में पहुंचकर ब्रह्मज्ञान की याचना करें | वे आप को ज्ञान दीक्षा के समय ही आपके अंतस में परमात्मा का प्रतक्ष्य साक्षात्कार करा देंगे | उस के बाद ध्यान साधना का निरंतर अभ्यास करके आप स्वयं को सही अर्थों में निर्मल, पावन और सदगुणी भी बना सकते हैं |

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