सिनेमा के पर्दे घूरने के लिए तो फिर भी लोग तीन घंटे निकल लेते हैं | इस दौरान हीरो - हीरोइन के चरित्र, संस्कार etc,etc... को भी जन - समझ लेते हैं |But who's got 3 hours in real life? Real life moves so fast, My lord! आज किसके पास एक-दुसरे को जानने-समझने का समय है? दूसरा पुराने दौर में, हमारी सोसाइटी महज गावों तक सिकुड़ी हुई थी | छोटी - छोटी होने की वजह से लोग एक दुसरे को काफी अच्छी तरह से जानते थे | बट आज! सोसाइटीयां बढ गई हैं | बिज़नस सर्कल, फ्रेंड्स सर्कल फैलते जा रहे हैं | ऐसे में किसी के पास किसी के अंदर झाँकने का वकत नहीं है | They don't look within you.They look at you - आज लोग हमारे अंदर नहीं देखते, हमें देखते हैं | इस लिए उन पर हमारा सबसे पहला इम्प्रेशन कपड़ों का ही पड़ता है | किसी ने खूब कहा है - Clothes are the powerful means of non - verbal communication - कपडे बिन बोले ही, मूक भाषा में, सामने वाले को हमारे बारे में बहुत कुछ बता देते हैं | उसके जेहन में हमारी जबरदस्त छाप छोड़ देते हैं |
यही तो सोचनीय बात है | यही तो चिंता और चिंतन का विषय है की आज के दौर में सिर्फ कपड़ों की बोली सुनी जा रही है | किसी के पास चरित्र की अप्रकट बोली सुनने का समय ही नहीं है | मैं इसी पर एक वाकया सुनाना चाहूँगा | एक वर स्वामी विवेकनद जी किसी पछिच्मी देश की साफ - सुथरी सड़क पर खड़े थे | उन्होंने भगवा चोला और पगड़ी पहनी हुई थी | तभी सामने से पछ्चात्य रंग ढंग से सने कुछ उस जमाने के आधुनिक युवक उनके समीप से गुजरे | स्वामी जी का सादा भारतीय लिबास उन्हें हजम नहीं हुआ | इसलिए वे लगे व्यंग्य - बाण छोड़ने! ठहाका मारकर हँसतें हुए स्वामी जी की खिल्ली उड़ाने लगे | स्वामी जी ने उन्हें देखकर मुस्कराए | फिर उन्ही की भाषा में बड़ी निर्भीकता से बोले - Oh brothers! I didn't know that in your country, tailors make a gentleman, for, in mine, Indian, character makes the one. अर्थात बंधुओं! मुझे पता नहीं था की आप के देश में दर्जी सज्जन पुरष का निर्माण करते हैं | कारण की मेरे देश में चरित्र ही एक सज्जन पुरष का गठन करता है | चरित्र ही उसकी पहचान है | इस तरह स्वामी जी ने भी समाज की इस विडम्बना के परिचय का सही आधार दिया - आंतरिक गुण! चरित्र !
हमारे शास्त्रों में भी एक बड़ा सुंदर दोहा है -
भेष - वेश मत देखिए, पूछ लीजिए ज्ञान,
मोल करो तलवार का पड़ी रहने दो म्यान |
मतलब की बाहरी वेश -भेष देखकर मत भरमाए | इंसान के आन्तरिक ज्ञान या सदगुणों को जांचिए | भला म्यान की क्या कीमत, चाहे वह रत्नजडित ही क्यों न हो! वही धार काम आएगी | उसी तरह, सुन्दर वस्त्र या वेश भूषा को देखकर आप किसी व्यक्ति से एक बार तो प्रभावित हो सकते हैं | पर यदि गुण नहीं, तो वह व्यक्ति भला किस काम का! यह सच्चाई आप आगे चलकर खुद अनुभव करते हैं! मन लीजिए, किसी के ट्रेंडी वस्त्र आदि देखकर आपने उससे मित्रता व् विवाह कर लिया या उसे अपने आफिस में रख लिया | पर यदि उस व्यक्ति का व्यवहार अच्छा नहीं, काबिलियत और गुण दिखावटी है, तो फिर ? फिर क्या! आप भविष्य में उससे रास्ता काटना ही पसंद करते हैं क्यों कि आप को पता है की उसका दिखाऊ रूप न आपका, न आपके घर का, न आपके आफिस का, न ही समाज का कोई फायदा कर सकता है |
इस लिए जरूरी तो है कि व्यक्ति का चरित्र इतना संयमित या शीतल हो जाए वह समाज में भी शीतलता दे पाए | इसी बात को अंग्रेज दार्शनिकों ने भी स्वीकारा - 'Simple living, high thinking' यानि सादा जीवन, उच्च विचार! महत्वपूर्ण यह नहीं की आप कैसे दिखते हो, जरूरी है, आप क्या हो! कपडे ही व्यक्ति को पहचान देते हैं, बिलकुल बेबुनियाद है! व्यक्ति को असली परिचय मेरा मुवकिकल आंतरिक गुण और चरित्र देते हैं|
मगर ऐसी सोच और चरित्र आज समय में कैसे पौदा होगा, जब की हर तरफ अशांति का माहौल है | वो केवल एक पूर्ण सतगुरु के शरण में जाकर ही आ सकता है | इस लिए हम सब ऐसे पूर्ण सतगुरु की खोज करें, जो ब्रह्मज्ञान के द्वारा हमारी आत्मा को जागृत कर दे | ब्रह्मज्ञान का मतलब अपने भीतर उसी समय इश्वर का दर्शन कर लेना | इस लिए जब हम जागेगें फिर पूरा विश्व जागेगा |
यही तो सोचनीय बात है | यही तो चिंता और चिंतन का विषय है की आज के दौर में सिर्फ कपड़ों की बोली सुनी जा रही है | किसी के पास चरित्र की अप्रकट बोली सुनने का समय ही नहीं है | मैं इसी पर एक वाकया सुनाना चाहूँगा | एक वर स्वामी विवेकनद जी किसी पछिच्मी देश की साफ - सुथरी सड़क पर खड़े थे | उन्होंने भगवा चोला और पगड़ी पहनी हुई थी | तभी सामने से पछ्चात्य रंग ढंग से सने कुछ उस जमाने के आधुनिक युवक उनके समीप से गुजरे | स्वामी जी का सादा भारतीय लिबास उन्हें हजम नहीं हुआ | इसलिए वे लगे व्यंग्य - बाण छोड़ने! ठहाका मारकर हँसतें हुए स्वामी जी की खिल्ली उड़ाने लगे | स्वामी जी ने उन्हें देखकर मुस्कराए | फिर उन्ही की भाषा में बड़ी निर्भीकता से बोले - Oh brothers! I didn't know that in your country, tailors make a gentleman, for, in mine, Indian, character makes the one. अर्थात बंधुओं! मुझे पता नहीं था की आप के देश में दर्जी सज्जन पुरष का निर्माण करते हैं | कारण की मेरे देश में चरित्र ही एक सज्जन पुरष का गठन करता है | चरित्र ही उसकी पहचान है | इस तरह स्वामी जी ने भी समाज की इस विडम्बना के परिचय का सही आधार दिया - आंतरिक गुण! चरित्र !
हमारे शास्त्रों में भी एक बड़ा सुंदर दोहा है -
भेष - वेश मत देखिए, पूछ लीजिए ज्ञान,
मोल करो तलवार का पड़ी रहने दो म्यान |
मतलब की बाहरी वेश -भेष देखकर मत भरमाए | इंसान के आन्तरिक ज्ञान या सदगुणों को जांचिए | भला म्यान की क्या कीमत, चाहे वह रत्नजडित ही क्यों न हो! वही धार काम आएगी | उसी तरह, सुन्दर वस्त्र या वेश भूषा को देखकर आप किसी व्यक्ति से एक बार तो प्रभावित हो सकते हैं | पर यदि गुण नहीं, तो वह व्यक्ति भला किस काम का! यह सच्चाई आप आगे चलकर खुद अनुभव करते हैं! मन लीजिए, किसी के ट्रेंडी वस्त्र आदि देखकर आपने उससे मित्रता व् विवाह कर लिया या उसे अपने आफिस में रख लिया | पर यदि उस व्यक्ति का व्यवहार अच्छा नहीं, काबिलियत और गुण दिखावटी है, तो फिर ? फिर क्या! आप भविष्य में उससे रास्ता काटना ही पसंद करते हैं क्यों कि आप को पता है की उसका दिखाऊ रूप न आपका, न आपके घर का, न आपके आफिस का, न ही समाज का कोई फायदा कर सकता है |
इस लिए जरूरी तो है कि व्यक्ति का चरित्र इतना संयमित या शीतल हो जाए वह समाज में भी शीतलता दे पाए | इसी बात को अंग्रेज दार्शनिकों ने भी स्वीकारा - 'Simple living, high thinking' यानि सादा जीवन, उच्च विचार! महत्वपूर्ण यह नहीं की आप कैसे दिखते हो, जरूरी है, आप क्या हो! कपडे ही व्यक्ति को पहचान देते हैं, बिलकुल बेबुनियाद है! व्यक्ति को असली परिचय मेरा मुवकिकल आंतरिक गुण और चरित्र देते हैं|
मगर ऐसी सोच और चरित्र आज समय में कैसे पौदा होगा, जब की हर तरफ अशांति का माहौल है | वो केवल एक पूर्ण सतगुरु के शरण में जाकर ही आ सकता है | इस लिए हम सब ऐसे पूर्ण सतगुरु की खोज करें, जो ब्रह्मज्ञान के द्वारा हमारी आत्मा को जागृत कर दे | ब्रह्मज्ञान का मतलब अपने भीतर उसी समय इश्वर का दर्शन कर लेना | इस लिए जब हम जागेगें फिर पूरा विश्व जागेगा |
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