Sunday, September 11, 2011

होश में आ जाओ बुलबुलों, चमन खतरे में है!

एक पुलिस वाला सत्याग्रहियों पर बेरहमी से डंडे बरसा रहा था | पंद्रह साल के किशोर चंद्रशेखर ने जब यह देखा, तो पुलिस वाले के एक पत्थर दे मारा | निशाना अचूक था | पुलिस वाले के माथे से रक्त की धारा वह निकली | चंद्रशेखर को पुलिस ने ग्रिफ्तार कर लिया | जब अदालत में पेश किया, तो जज ने पूछा - ' ऐ लड़के, तुम्हारा नाम क्या है ?'

'आजाद' - निर्भीक स्वर में तुरंत उत्तर आया !
जज - तुम्हारे पिता का नाम ?
चंद्रशेखर - स्वतंत्र !
जज - घर का पता?
चंद्रशेखर - जेलखाना!

जज गुस्से से लाल हो गया| उसने बालक के शारीर पर पन्द्रह बेंत लगाए जाने की सजा सुना दी | हर बेंत के साथ चमड़ी लिपट - लिपट कर उधड़ती चली गई | लेकिन हर बार तडफन की चीखें नहीं, ' भारत माता की जय' का स्वर गूंजा | लहुलहान आजाद जब घर पहुंचा -
माँ - इस तरह के काम करके तू क्यों मुझे दुखी करता है ?
चंद्रशेखर - माँ, मुझे करोड़ों पुत्रों की माँ का दुःख अधिक सताता है | मुझसे अपनी भारत माँ को जंजीरों में जकड़ा नहीं देखा जाता | यदि उसके प्रति अपना फ़र्ज़ न निभाउगा, तो मेरी आत्मा मुझे धिक्कारेगी |
माँ - पर, तू अकेला क्या कर लेगा ?

चंद्रशेखर - माँ, आग की एक छोटी सी चिंगारी ही बड़े - बड़े महलों को जलाकर राख कर देने में सक्षम है | फिट क्यों भूलती हो की बूँद - बूँद मिलकर ही विशाल सागर बनता है | आज हमारी संख्या बेशक कम है | पर, एक दिन बच्चा - बच्चा हमारे साथ होगा | इन अंग्रेजों को धुल चटा देगा | अंत में 15 अगस्त, 1947 को भारत आजाद हो गया | आज हम राजनीतिक तौर पर तो आजाद हो गए, पर मानसिक तौर पर आज भी गुलाम हैं |

बंधुओं, आज हमारे सामने एक और लक्ष्य है | वह लक्ष्य, जो पहले से भी की गुना बृहद है | जो केवल देश की सीमा तक सीमित नहीं, अपितु पूरे विश्व पर केन्द्रित है | वह है 'विश्व - शांति' का महालक्ष्य ! तो क्या इस महान लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमें - आपको-हम सबको, यानी समूचे विश्व की एक -एक इकाई को अपना योगदान नहीं देना होगा?

हमने पढ़ा की छोटी - छोटी घटनायों से प्रेरित होकर देश का बच्चा बच्चा स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ा था | मात्रभूमि के प्रति अपना फ़र्ज़ चुकाने से नहीं चूका था | फिर आज हम तो हर रोज दिल दहलाने वाली न जाने कितनी ही बड़ी वारदातों को घटता देखते हैं | भ्रष्टाचार,क़त्ल,शोषण,आंतकवाद, मानव बम...इनकी प्रचंड अग्नि से सम्पूर्ण विश्व को झुलसता देख रहे हैं | विशव की नस - नस में बारूद भरा जा चुका है | तो क्या ऐसी भीषण परिस्थितियों में हमारा कोई कर्तव्य नहीं? सोचिए, झंझोडें , अपनी आत्मा को! कब तब स्वार्थ की गफलत में उंघते रहेंगे? जगाए अपने अन्तकरण को! आत्म जागृत के लिए प्रयासरत होएं | एक पूर्ण गुरु द्वारा ब्रह्मज्ञान के प्रकाश को प्राप्त करें, क्यों की केवल ब्रह्मज्ञान ही आत्मा को जागृत कर सकता है | उसके बाद ही हम स्व से ऊपर इस धरा को अपना कुटुम्ब मान पाएंगे | वसुधैव की शांति के लिए प्रयासरत हो सकेंगे | तब फिर वह दिन भी दूर नहीं, जब विश्व - शांति का सपना भी साकार होगा |

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