श्री गुरु अर्जुन देव जी सुखमनी साहिब में कहते हैं कि जो जन संत कि शरणागत होते हैं, उनका कल्याण होता है | पर यहाँ ध्यातव्य है कि संत किसे कहा गया | संत अर्थात वे महापुरष,जिन्होंने ईश्वर का साक्षात्कार किया है और अपनी शरण में आने वाले जिज्ञासुओं को भी करवाने कि सामर्थ्य रखते हैं | जो भी ज्ञान दीक्षा कि पिपासा लिए उनके सानिंध्य में आते हैं, वे तत्षण ही उन्हें उनके अंतर्जगत में परमात्मा के तत्वरूप का दर्शन करा देते हैं | परमात्म - दर्शन के उपरान्त साधक साधना सुमिरन द्वारा अध्यात्म मार्ग पर अग्रसर होता है व एक दिन अपने लक्ष्य ईश्वर को पूर्णत पा लेता है | अंश अंशी में मिल जाता है | फिर वह आवागमन के चक्र में नहीं फंसता | यही जीव का सर्वोत्तम कल्याण
है |
आगे कि दो पंकितयां कुछ रहस्यात्मक हैं | उनमें कहा गया -संत की निंदा नानका बहुरि बहुरि अवतार अर्थात जो पूर्ण संतों कि शरण में नहीं आते, अपितु उसकी निंदा करते हैं, उन्हें बार - बार जन्म लेना पड़ता है| वे पुन: मृत्युलोक में आने को विवश होते हैं | अपने दुष्कर्मों का फल भोगते हैं | पर मुख्य प्रशन है कि उनके लिए अवतार शब्द क्यों प्रयोग किया गया | जबकि प्रचलित भाषानुसार तो अवतार शब्द श्री राम, श्री कृषण, महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी आदि के लिए प्रयोग में लाया जाता है | दरअसल इस शलोक में अवतार शब्द व्यगात्मक रूप में प्रयुक्त किया गया है | जैसे कि यदि आप बनारस कि तरफ जाएँ, तो वहां गुरु शब्द किस के लिए प्रयोग किया जाता है? यदि देखें तो गुरु शब्द हमारी संस्कृति के अनुसार अत्यंत महान शब्द है | उन ज्ञानी पुरषों को इससे संबोधित किया जाता है | जो हमें अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश में ले जाने कि सामर्थ्य रखते हैं | परन्तु बनारस में यह शब्द व्यगात्मक रूप में, असामाजिक तत्वों के लिए प्रयोग किया जाता है | ठीक इसी प्रकार इस शलोक में भी ऐसे दुष्टजनों के लिए जो संतों कि निंदा करते हैं, उनका विरोध करते हैं, उनके लिए व्यंगात्मक रूप में अवतार शब्द प्रयोग किया गया है | क्यों कि यह अटल सत्य है कि जब - जब भगवान इस धरा पर अवतरित होते हैं, तब - तब ये दुष्टजन भी जन्म लेते हैं | प्रभु के कार्य का विरोध करने के लिए, सत्य के खिलाफ आंधी चलाने के लिए | इसी बात को भगवान श्री कृषण जी ने भी अर्जुन को कहा कि ऐसा कोई समय नहीं था जब तू नहीं था, मैं नहीं था अथवा ये दुष्ट लोग नहीं थे और न ही भविष्य में ऐसा कभी होगा |
तात्पर्य यह है कि संतों के निंदक भी हमेशा ही संसार में रहते हैं | जब - जब संत आते हैं, तब - तब ये निंदक भी साथ - साथ आते हैं | हर युग में, हर वार, खूब डटकर संतों व उनके सत्य प्रचार का विरोध करते हैं | परन्तु संत महापुरषों ने कभी भी इन विरोधियों को अपना अवरोधक नहीं माना | अपितु उन्होंने तो इन्हें सत्य के बीजों को दूर - दूर तक बिखेरने वाली आंधी समझा | इसलिए अवतार जैसा सम्मानीय सम्बोधन का प्रयोग किया |
निंदक नेअरे रखिये, आँगन कुटि छवाय |
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करै सुभाय ||
संत कबीर जी कहते हैं कि निंदक हमारे हितकारी हैं, हमारा कल्याण करते हैं | इसलिए उन्हें सदा समीप ही रखना चाहिए | जैसे संत ज्ञानवर्षा कर हमारे कर्म संस्कार धोते हैं, वैसे ही ये अज्ञानी निंदक हमारी निंदा चुगली कर हमारे पाप कर्मों का सफाया करते हैं | इस तरह एक प्रकार से ये भी संत अवतारों कि भांति हमारा उद्धार ही करते हैं |
है |
आगे कि दो पंकितयां कुछ रहस्यात्मक हैं | उनमें कहा गया -संत की निंदा नानका बहुरि बहुरि अवतार अर्थात जो पूर्ण संतों कि शरण में नहीं आते, अपितु उसकी निंदा करते हैं, उन्हें बार - बार जन्म लेना पड़ता है| वे पुन: मृत्युलोक में आने को विवश होते हैं | अपने दुष्कर्मों का फल भोगते हैं | पर मुख्य प्रशन है कि उनके लिए अवतार शब्द क्यों प्रयोग किया गया | जबकि प्रचलित भाषानुसार तो अवतार शब्द श्री राम, श्री कृषण, महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी आदि के लिए प्रयोग में लाया जाता है | दरअसल इस शलोक में अवतार शब्द व्यगात्मक रूप में प्रयुक्त किया गया है | जैसे कि यदि आप बनारस कि तरफ जाएँ, तो वहां गुरु शब्द किस के लिए प्रयोग किया जाता है? यदि देखें तो गुरु शब्द हमारी संस्कृति के अनुसार अत्यंत महान शब्द है | उन ज्ञानी पुरषों को इससे संबोधित किया जाता है | जो हमें अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश में ले जाने कि सामर्थ्य रखते हैं | परन्तु बनारस में यह शब्द व्यगात्मक रूप में, असामाजिक तत्वों के लिए प्रयोग किया जाता है | ठीक इसी प्रकार इस शलोक में भी ऐसे दुष्टजनों के लिए जो संतों कि निंदा करते हैं, उनका विरोध करते हैं, उनके लिए व्यंगात्मक रूप में अवतार शब्द प्रयोग किया गया है | क्यों कि यह अटल सत्य है कि जब - जब भगवान इस धरा पर अवतरित होते हैं, तब - तब ये दुष्टजन भी जन्म लेते हैं | प्रभु के कार्य का विरोध करने के लिए, सत्य के खिलाफ आंधी चलाने के लिए | इसी बात को भगवान श्री कृषण जी ने भी अर्जुन को कहा कि ऐसा कोई समय नहीं था जब तू नहीं था, मैं नहीं था अथवा ये दुष्ट लोग नहीं थे और न ही भविष्य में ऐसा कभी होगा |
तात्पर्य यह है कि संतों के निंदक भी हमेशा ही संसार में रहते हैं | जब - जब संत आते हैं, तब - तब ये निंदक भी साथ - साथ आते हैं | हर युग में, हर वार, खूब डटकर संतों व उनके सत्य प्रचार का विरोध करते हैं | परन्तु संत महापुरषों ने कभी भी इन विरोधियों को अपना अवरोधक नहीं माना | अपितु उन्होंने तो इन्हें सत्य के बीजों को दूर - दूर तक बिखेरने वाली आंधी समझा | इसलिए अवतार जैसा सम्मानीय सम्बोधन का प्रयोग किया |
निंदक नेअरे रखिये, आँगन कुटि छवाय |
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करै सुभाय ||
संत कबीर जी कहते हैं कि निंदक हमारे हितकारी हैं, हमारा कल्याण करते हैं | इसलिए उन्हें सदा समीप ही रखना चाहिए | जैसे संत ज्ञानवर्षा कर हमारे कर्म संस्कार धोते हैं, वैसे ही ये अज्ञानी निंदक हमारी निंदा चुगली कर हमारे पाप कर्मों का सफाया करते हैं | इस तरह एक प्रकार से ये भी संत अवतारों कि भांति हमारा उद्धार ही करते हैं |
No comments:
Post a Comment