एक व्यक्ति के पास तीन प्रकार के धनुष्य थे | पहला धनुष्य बोला कि, 'हे मालिक, कहीं मुझे यू ही पड़े - पड़े जंग न लग जाये, इसलिए तू मेरा इस्तेमाल कर |' दूसरे ने कहा, तू मेरी प्रत्यंचा चढ़ा | लेकिन देखो, ध्यान से ! कहीं मैं टूट न जाओं ? तीसरे धनुष्य ने कहा,' तू जैसे चाहे मेरा इस्तेमाल कर, बेशक मैं टूट क्यों न जाओं | ठीक ऐसे ही तीन प्रकार के लोग गुरु के पास पहुँचते हैं | पहली प्रकार के लोग पहले धनुष्य कि भांति गुरु की सेवा तो करते हैं, लेकिन इस डर से कहीं सांसारिक कष्ट हमें खत्म न कर दें | कहीं हमारे जीवन में दुःख न आ जाएँ | ये व्यापारी किस्म के होते हैं |
दूसरी प्रकार के भक्त, दूसरे धनुष्य जैसे होते हैं जो कहते हैं हमारी प्रत्यंचा चढाओ, लेकिन ध्यान रखना कहीं हम टूट न जाएँ | ऐसे भक्त सेवा तो करते हैं, लेकिन अपने आप को सुरक्षित रखकर | स्वयं का नुकसान नहीं देख सकते | पहली प्रकार के भक्त तो फिर भी समझाने से समझ जाते हैं | लेकिन ये दूसरे प्रकार के भक्त इतने डरपोक और कायर होते हैं कि समझाने पर भी इनका विवेक जागृत नहीं होता | ये भक्त मुश्किलों से घबराकर, इस पथ को छोड़ देते हैं, इस मार्ग से टूट जाते हैं |और जब टूटते हैं तो दोष भी गुरु को देते हैं , लेकिन ऐसे भक्त भली - भांति समझ लें, कि अगर वे पूर्ण ज्ञान का आनंद नहीं उठा पा रहे इस का एक मात्र कारण यही है क वे उचित मूल नहीं दे रहे | आपको समर्पण और त्याग रुपी मूल्य देना होगा | उसी समय आप को परमानन्द का अनुभव होगा |
तीसरी प्रकार के शिष्य वे हैं जो कहते हैं , 'हे गुरुवर, हमें अपनी सेवा में लगा लो | बदले में चाहे हम खत्म ही क्यों न हो जाएँ | ऐसे शिष्यों कि तुलना वारिश में सीधे पड़े घड़े के साथ कि जा सकती है | इनमें पात्रता होती है | ये गुरु कृपा को समेट पाते हैं | ये योग्य बनते हैं पर कुछ नहीं मांगते | लोग कहते हैं First deserve, then desire पहले योग्य बनो फिर इच्छा करो | पर हमारे वेदों ने कहा Always deserve, but never Desire - सदा योग्य बने रहो, लेकिन कभी इच्छा मत करो | क्यों कि तुम्हारा अंतरयामी गुरु सब जनता है कि तुम्हे कब क्या चाहिए | जो भक्त गुरु के सिवा कुछ देखते नहीं, बोलते नहीं, सुनते नहीं, सोचते नहीं, उनका तो सदैव गुरु भी चिंतन किया करते हैं |
आप भी महाराज जी के निर्देशों को समझें और उनके मुतबिक चलते चलें | खुशकिस्मत होते हैं वो लोग, जिनका चुनाव समय का रहवर करता है | मिटटी के खिलोने को तो एक दिन टूटना ही है | अच्छा होगा अगर हम सत्य कि राहों पर चलते हुए अपने आप को कुर्बान कर दें | मन से, तन से, अंदर से, बाहर से - सब ओर से गुरु के लक्ष्य के लिए कुर्बान हो जाएँ | किसी ने खूब कहा है -
जो सच को ईमान बना लेते हैं,
अपने आप को इन्सान बना लेते हैं |
आ जाता है सच पर मरना जिन्हें,
वो मरने को वरदान बना लेते हैं |
अंत में मैं यही कहना चाहूँगा कि हम सभी ने तीसरे प्रकार का गुरु भक्त बनने का प्रयास करना है | हम ने गुरु को स्वतंत्रता देनी है, कि वे हमें तराश सके | दूसरों को या ज्ञान को या गुरु को दोष देने की बजाय स्वयं पर दृष्टिपात करना है | कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारा दामन अब तक इस लिए खाली है क्यों कि हमने उसके छेद बंद नहीं किए | सच मानिए, गुरु चोबीस घंटे आपका इंतजार कर रहा है कि कब मेरा शिष्य मेरे पास आए | उसके इंतजार को निराशा नहीं देनी, बल्कि ऐसा शिष्य बनना है जिस की उसे तलाश है | वह शिष्य जिस पर वह शासन कर सके, अपनी मर्ज़ी लागू कर सके |
दूसरी प्रकार के भक्त, दूसरे धनुष्य जैसे होते हैं जो कहते हैं हमारी प्रत्यंचा चढाओ, लेकिन ध्यान रखना कहीं हम टूट न जाएँ | ऐसे भक्त सेवा तो करते हैं, लेकिन अपने आप को सुरक्षित रखकर | स्वयं का नुकसान नहीं देख सकते | पहली प्रकार के भक्त तो फिर भी समझाने से समझ जाते हैं | लेकिन ये दूसरे प्रकार के भक्त इतने डरपोक और कायर होते हैं कि समझाने पर भी इनका विवेक जागृत नहीं होता | ये भक्त मुश्किलों से घबराकर, इस पथ को छोड़ देते हैं, इस मार्ग से टूट जाते हैं |और जब टूटते हैं तो दोष भी गुरु को देते हैं , लेकिन ऐसे भक्त भली - भांति समझ लें, कि अगर वे पूर्ण ज्ञान का आनंद नहीं उठा पा रहे इस का एक मात्र कारण यही है क वे उचित मूल नहीं दे रहे | आपको समर्पण और त्याग रुपी मूल्य देना होगा | उसी समय आप को परमानन्द का अनुभव होगा |
तीसरी प्रकार के शिष्य वे हैं जो कहते हैं , 'हे गुरुवर, हमें अपनी सेवा में लगा लो | बदले में चाहे हम खत्म ही क्यों न हो जाएँ | ऐसे शिष्यों कि तुलना वारिश में सीधे पड़े घड़े के साथ कि जा सकती है | इनमें पात्रता होती है | ये गुरु कृपा को समेट पाते हैं | ये योग्य बनते हैं पर कुछ नहीं मांगते | लोग कहते हैं First deserve, then desire पहले योग्य बनो फिर इच्छा करो | पर हमारे वेदों ने कहा Always deserve, but never Desire - सदा योग्य बने रहो, लेकिन कभी इच्छा मत करो | क्यों कि तुम्हारा अंतरयामी गुरु सब जनता है कि तुम्हे कब क्या चाहिए | जो भक्त गुरु के सिवा कुछ देखते नहीं, बोलते नहीं, सुनते नहीं, सोचते नहीं, उनका तो सदैव गुरु भी चिंतन किया करते हैं |
आप भी महाराज जी के निर्देशों को समझें और उनके मुतबिक चलते चलें | खुशकिस्मत होते हैं वो लोग, जिनका चुनाव समय का रहवर करता है | मिटटी के खिलोने को तो एक दिन टूटना ही है | अच्छा होगा अगर हम सत्य कि राहों पर चलते हुए अपने आप को कुर्बान कर दें | मन से, तन से, अंदर से, बाहर से - सब ओर से गुरु के लक्ष्य के लिए कुर्बान हो जाएँ | किसी ने खूब कहा है -
जो सच को ईमान बना लेते हैं,
अपने आप को इन्सान बना लेते हैं |
आ जाता है सच पर मरना जिन्हें,
वो मरने को वरदान बना लेते हैं |
अंत में मैं यही कहना चाहूँगा कि हम सभी ने तीसरे प्रकार का गुरु भक्त बनने का प्रयास करना है | हम ने गुरु को स्वतंत्रता देनी है, कि वे हमें तराश सके | दूसरों को या ज्ञान को या गुरु को दोष देने की बजाय स्वयं पर दृष्टिपात करना है | कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारा दामन अब तक इस लिए खाली है क्यों कि हमने उसके छेद बंद नहीं किए | सच मानिए, गुरु चोबीस घंटे आपका इंतजार कर रहा है कि कब मेरा शिष्य मेरे पास आए | उसके इंतजार को निराशा नहीं देनी, बल्कि ऐसा शिष्य बनना है जिस की उसे तलाश है | वह शिष्य जिस पर वह शासन कर सके, अपनी मर्ज़ी लागू कर सके |
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