किनही बनजिआ कांसी तांबा किनही लउग सुपारी ॥
संतहु बनजिआ नामु गोबिद का ऐसी खेप हमारी ॥१॥
हरि के नाम के बिआपारी ॥
हीरा हाथि चड़िआ निरमोलकु छूटि गई संसारी ॥१॥ रहाउ ॥
संत कबीर जी कहते हैं कि किसी ने तो कांसी तांबा आदि धातुओं का व्यापार किया किसी ने लोंग सुपारी का व्यापार किया | लेकिन संतों ने प्रभु के नाम का व्यापार किया, ऐसा हमारा व्यापार है | कहते हैं कि हम तो प्रभु के नाम के व्यापारी हैं | जब से प्रभु भक्ति के नाम का हीरा हाथ में आया तो यह संसार के धन के प्रति कामनाएं स्वयं ही छूट गई | इस प्रकार संत महापुरषों ने सत्संग की सबसे ज्यादा महिमा गाई है | श्री गुरु अर्जुन देव जी कहते हैं -
हरि कीरति साधसंगति है सिरि करमन कै करमा ॥
कहु नानक तिसु भइओ परापति जिसु पुरब लिखे का लहना ॥८॥
गुरबाणी में कहा गया है कि जीवन का मुख्य कर्म साध संगति है | इसलिए हमें उस कर्म को अवश्य करना चाहिए | जिस के द्वारा हम सुसंगति में जाए | यह बहुत भाग्य की निशानी हमारे पिछले जन्मों के शुभ संस्कार हैं, जिनके कारण हमें सत्संग का सन्देश मिलता है, सत्संग की प्राप्ति होती है | क्योंकि जगत में सत्संग की प्राप्ति को बहुत दुर्लभ बताया गया है | तुलसीदास जी कहते हैं -
सुत दारा अरु लक्ष्मी पापी घर भी होय |
संत समागम हरि कथा तुलसी दुर्लभ दोय ||
कहा है कि पुत्र, सुंदर पत्नी और धन सम्पति यह तो पापी मनुष्य के पास भी हो सकती है | परन्तु संत का समागम अर्थात संत का संग और प्रभु की कथा, हरि चर्चा यह दोनों ही इस भौतिक जगत में दुर्लभ है | जैसाकि सुन्दरदास जी ने कहा है -
तात मिले पुनि मात मिले, सूत भ्रात मिले युवती सुखदाई |
राज मिले गजबज मिले, सबसाज मिले मन बांछत फल पाई ||
लोक मिले सुर लोक मिले, बिधि लोक मिले बैकुण्ठहु जाई |
सुंदर कहत ओर मिले सबही सुख, संत समागम दुर्लभ पाई |
कहा है कि सुख देने के लिए भाई-बहन, माता-पिता एवं सुंदर पत्नी भी मिल गए | राज्य, हाथी, घोड़े इत्यादि भी मिल गए | मन इच्छित सभी वस्तुओं की प्राप्ति भी हो गई | यह लोक भी मिल गया | देवलोक के आनन्द को भी प्राप्त कर लिया | ब्रह्मलोक यहाँ तक कि बैकुण्ड भी मिल गया तब भी सुन्दरदास जी कहते है कि कितने भी सुख ऐश्वर्य आनंद क्यों न मिल जाए | परन्तु संत की संगत बहुत ही दुर्लभ है | संत की संगत ही हमें जीवन की वास्तविक दिशा दिखाती है | सत्संग के द्वारा ही हम यह जान पाते हैं कि क्या करना है और क्या नहीं करना है | बहुत से व्यक्ति अज्ञानता में गलत कार्य करते हैं परन्तु जब सत्संग के द्वारा उन्हें वास्तविकता का ज्ञान होता है | तब वह स्वयं ही सत्य के साथ जुड़ने का प्रयास प्रारम्भ कर देते हैं | उनसे गलत कार्य छूटने लग जाते हैं | संत का संग मनुष्य के जीवन में महान और आश्चर्यजनक परिवर्तन ला देता है | हमारे इतिहास में इसके बहुत से उदाहरण आते हैं | जैसे अंगुलिमाल डाकू, सज्जन ठग, कोड़ा राक्षस, गणिका वेश्या, अजामिल इत्यादि | इस लिए हमें भी चाहिए कि हम ऐसे पूर्ण संत की शरण को प्राप्त करें, उस के बाद आप भी जीवन में परम सुख और शांति अनुभव करेंगे | आज समाज को क्रांति ओर मानव को शांति की जरूरत है, वो केवल ब्रह्मज्ञान से ही आ सकती है | केवल अध्यात्म ही धू - धू कर जलते विश्व को बचा सकता है |जिस के बारे में संत कबीर जी कहते हैं -
आग लगी आकाश में, झर झर गिरे अंगार !
संत न होते जगत में ,तो जल मरता संसार !!
संतहु बनजिआ नामु गोबिद का ऐसी खेप हमारी ॥१॥
हरि के नाम के बिआपारी ॥
हीरा हाथि चड़िआ निरमोलकु छूटि गई संसारी ॥१॥ रहाउ ॥
संत कबीर जी कहते हैं कि किसी ने तो कांसी तांबा आदि धातुओं का व्यापार किया किसी ने लोंग सुपारी का व्यापार किया | लेकिन संतों ने प्रभु के नाम का व्यापार किया, ऐसा हमारा व्यापार है | कहते हैं कि हम तो प्रभु के नाम के व्यापारी हैं | जब से प्रभु भक्ति के नाम का हीरा हाथ में आया तो यह संसार के धन के प्रति कामनाएं स्वयं ही छूट गई | इस प्रकार संत महापुरषों ने सत्संग की सबसे ज्यादा महिमा गाई है | श्री गुरु अर्जुन देव जी कहते हैं -
हरि कीरति साधसंगति है सिरि करमन कै करमा ॥
कहु नानक तिसु भइओ परापति जिसु पुरब लिखे का लहना ॥८॥
गुरबाणी में कहा गया है कि जीवन का मुख्य कर्म साध संगति है | इसलिए हमें उस कर्म को अवश्य करना चाहिए | जिस के द्वारा हम सुसंगति में जाए | यह बहुत भाग्य की निशानी हमारे पिछले जन्मों के शुभ संस्कार हैं, जिनके कारण हमें सत्संग का सन्देश मिलता है, सत्संग की प्राप्ति होती है | क्योंकि जगत में सत्संग की प्राप्ति को बहुत दुर्लभ बताया गया है | तुलसीदास जी कहते हैं -
सुत दारा अरु लक्ष्मी पापी घर भी होय |
संत समागम हरि कथा तुलसी दुर्लभ दोय ||
कहा है कि पुत्र, सुंदर पत्नी और धन सम्पति यह तो पापी मनुष्य के पास भी हो सकती है | परन्तु संत का समागम अर्थात संत का संग और प्रभु की कथा, हरि चर्चा यह दोनों ही इस भौतिक जगत में दुर्लभ है | जैसाकि सुन्दरदास जी ने कहा है -
तात मिले पुनि मात मिले, सूत भ्रात मिले युवती सुखदाई |
राज मिले गजबज मिले, सबसाज मिले मन बांछत फल पाई ||
लोक मिले सुर लोक मिले, बिधि लोक मिले बैकुण्ठहु जाई |
सुंदर कहत ओर मिले सबही सुख, संत समागम दुर्लभ पाई |
कहा है कि सुख देने के लिए भाई-बहन, माता-पिता एवं सुंदर पत्नी भी मिल गए | राज्य, हाथी, घोड़े इत्यादि भी मिल गए | मन इच्छित सभी वस्तुओं की प्राप्ति भी हो गई | यह लोक भी मिल गया | देवलोक के आनन्द को भी प्राप्त कर लिया | ब्रह्मलोक यहाँ तक कि बैकुण्ड भी मिल गया तब भी सुन्दरदास जी कहते है कि कितने भी सुख ऐश्वर्य आनंद क्यों न मिल जाए | परन्तु संत की संगत बहुत ही दुर्लभ है | संत की संगत ही हमें जीवन की वास्तविक दिशा दिखाती है | सत्संग के द्वारा ही हम यह जान पाते हैं कि क्या करना है और क्या नहीं करना है | बहुत से व्यक्ति अज्ञानता में गलत कार्य करते हैं परन्तु जब सत्संग के द्वारा उन्हें वास्तविकता का ज्ञान होता है | तब वह स्वयं ही सत्य के साथ जुड़ने का प्रयास प्रारम्भ कर देते हैं | उनसे गलत कार्य छूटने लग जाते हैं | संत का संग मनुष्य के जीवन में महान और आश्चर्यजनक परिवर्तन ला देता है | हमारे इतिहास में इसके बहुत से उदाहरण आते हैं | जैसे अंगुलिमाल डाकू, सज्जन ठग, कोड़ा राक्षस, गणिका वेश्या, अजामिल इत्यादि | इस लिए हमें भी चाहिए कि हम ऐसे पूर्ण संत की शरण को प्राप्त करें, उस के बाद आप भी जीवन में परम सुख और शांति अनुभव करेंगे | आज समाज को क्रांति ओर मानव को शांति की जरूरत है, वो केवल ब्रह्मज्ञान से ही आ सकती है | केवल अध्यात्म ही धू - धू कर जलते विश्व को बचा सकता है |जिस के बारे में संत कबीर जी कहते हैं -
आग लगी आकाश में, झर झर गिरे अंगार !
संत न होते जगत में ,तो जल मरता संसार !!
excellent
ReplyDeleteNice
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