अंग्रेज तो चले गए थे | मगर हम अंग्रेजीयत की बेड़ियाँ उतर फेंकने को राजी नहीं हैं | हमें मानसिक गुलामी की कजरी कोठरियां भा गई हैं | इसका ज्वलंत प्रमाण है - 'Government of India Act'.यह एक लोह जंजीर थी,जिससे अंग्रेजों ने भारतीय जनता को बरसों जकड़े रखा | इस एक्ट का बहुत बड़ा भाग हमने ज्यों का त्यों आखें मूँद संविधान में अपना लिए | Indian Police Act,Indian Civil Services Act,Indian Penal Code,Criminal Procedure Code,Indian Evidence Act,Civil Procedure Code,Indian Citizenship etc नियमों को भी हमने बिना फेर बदल किए मूक-बधिरों की तरह शिरोधार्य कर लिया | यह बेड़ियाँ पहने रखना नहीं,तो और क्या है ?
स्वतंत्रता प्राप्ति के 50 वर्षों के बाद तक हमारा बजट सांय 5 बजे प्रसारित होता है | सुबह,दोपहर या हमारे कार्यलयों की कार्य अवधि के दोरान नहीं | जानते हैं क्यों ? क्योंकि कि अंग्रेजी सत्ता के समय ऐसा ही कायदा था | इस लिए जब भारत में शाम के 5 बजते हैं,तब इंग्लैंड मैं सुबह के लगभग 11:30 होते हैं | अंत भारत में बैठे अंग्रेजी नुमेंदे संध्याकाल में बजट पेश करते,ताकि इंग्लैंड के सरकारी अफसर अपनी कार्य अवधि में उसे आराम से सुन सकें | 50 सालों तक हमें अपनी इस असुविधा तक का भान न हुआ और हम बिना सोचे समझे इस अंग्रेजी चलन को ढोते रहे |
अनगिनत उदहारण है ,जो हमारी मानसिक गुलामी के मूंह बोलते प्रमाण हैं | इसी में एक प्रथा है - नव वर्ष पहली जनवरी को मनाना | वास्तव में सन 1752 में एस प्रचलन को अंग्रेजों ने ही भारत में आयात किया और आरोपित कर डाला | इस चलन में हमारी अपनी कोई सोच - सुधि या इतिहास नहीं है | यह नववर्ष 'ग्रेगोरियन' कैलंडर पर आधारित है और जो आज पूरे विश्व में अपना प्रभुत्व जमा रहा है | यह कैलंडर सुर्य पर आधारित है |
विडंबना यह घटी कि अंग्रेजों के कूच कर जाने के बाद भी हम इसी कैलंडर के संकेतों पर नृत्य करते रहे | पहली जनवरी को ही नववर्ष का स्वागत करने लगे | स्वंय अपने संवत्सर और काल गणना को बिसार बैठे | आप को यह भी न पता हो कई हमारे भारत का एक निजी कलैंडर और काल गणना भी है | भारत की यह काल गणना सबसे प्रचीन व् वयोव्रद्ध है | इसी प्रचीनतम अथवा वैदिक कालगणना के आधार पर भारत के महान सम्राट महाराज विक्रमादित्य ने कलियुग शुरू होने के 3044 वर्षों बाद अर्ताथ आज से 2067 वर्ष पूर्व 'विक्रम संवत ' या भारतीय कलैंडर की स्थापना की थी | धार्मिक अनुष्ठानों के अंतगत आज भी विद्वान् लोग शुभ संकल्प इसी के आधार पर कराते हैं | भारतीय संवत्सर में महीनों के नाम वैज्ञानिक ढंग से,आकाशीय नक्षत्रों के उदय-अस्त होने के अधार पर रखे गए हैं |
इसके अतिरिक्त 'ग्रेगोरियन' कलैंडर में कुछ नोसिखिये पहलू भी दीख पड़ते हैं | जैसे कि अर्धरात्रि को 12 बजे घुप्प अंधकार के बीच,जब सारी दिनचर्य ठप्प पड़ जाती है- तब 'ग्रेगोरियन' कलैंडर के हिसाब से न्य दिन करवट लेता है | आधी रात को तिथि बदल जाती है | पर वही दूसरी ओर,भारतीय संवत के अनुसार हर सुर्येदय के साथ,जब धरा पर नारंगी किरणे बिखरती हैं,तब न्य दिन चढ़ता है | माने सूर्यदेव के दर्शन के साथ ही ने दिन का सुस्वागतम ! कहिए कौन सी बात ज्यादा जंचती है ?
1जनवरी की बात करें,तो इस दिन नएपन का कोई मांगल्य व सार्थक कारण दिखाई नहीं पड़ता | ठिठुरती सर्दियों में ,जब सारी प्रकृति सुस्त,गुमसुम और जमी हुई होती है,जरे -जरे मानों उंघ ओर अलसा रहा होता है -तब काहे का ओर कैसा नववर्ष !
अंत में मैं केवल इतना कहना चाहता हूँ कि हमने स्वतंत्रता क्रांति छेड़कर अंग्रेजों से केवल अपनी सत्ता भर छीनी है | परन्तु यह स्वतंत्रता अधूरी है | यह क्रांति अधूरी है | अब इस क्रांति को पूरा करना है | भारत को अंग्रेजीयत से भी मुक्त कराना है और भारतीय संवत के आधार पर ही नववर्ष का स्वागत करना है |
No comments:
Post a Comment