Sunday, January 23, 2011

लेखु न मिटई हे सखी जो लिखिआ करतारि ॥




लेखु न मिटई हे सखी जो लिखिआ करतारि ॥ 

करतार द्वारा कर्मों के आधार पर लिखा गया भाग्य बदल पाना एक साधारण मनुष्य के लिए असम्भव सा ही है | पर वहीं उन्होंने जन-मानस के कल्याण के लिए उस उपाय को भी बताया जिससे इस असम्भव कार्य को भी संभव किया जा सकता है | 

नानक जिन्ह कउ सतिगुरु मिलिआ तिन्ह का लेखा निबड़िआ ॥१८॥१॥२

अर्थात जब वही निराकार करतार साकार बन सतगुरु के रूप में आता है,तब उसी की कृपा से हमारे भाग्य का उलझा हुआ ताना-बाना भी सुलझ सकता है क्योंकि सतगुरु एक शिष्य के भीतर ब्रह्मज्ञान द्वारा ब्रह्माग्नि को प्रकट कर देते हैं और यह एक अटल नियम है कि ब्रह्म ज्ञानाग्नि में साधक के सभी कर्म संस्कार समिधा रूप में स्वाहा हो जाते हैं | साधक द्वारा किया गया निरंतर ध्यान का अभ्यास उसके भाग्य का पुन: निर्माण करता है | ऐसे अनेकों उदहारण हैं यहाँ सूली से शूल बनते देखा गया,भाग्य में लिखा पहाड़ जैसा कष्ट भी मात्र कंकड़  की ठोकर के रूप में सामने आया | ऐसे ही अनेक साधक ज्ञान के मार्गदर्शन में,संघर्ष  द्वारा विषमताओं से भरे बादलों की चीरकर देदीप्यमान सुर्य की भांति प्रकाशित हुए हैं | न केवल अपने अपितु ब्रह्मज्ञान के प्रकाश से लाखों अन्य मनुष्यों  के अंधकारमय भाग्यों को भी उज्जवल कर देते हैं | इस लिए किसी ने ठीक कहा है -
प्राप्त करो ब्रह्मज्ञान,मत बैठो भाग्य सहारे,
धरती पर कितने जन बने महान,
मिटा डाले जिन्होंने मन के अंधियारे |
मिला है,जीवन प्रभु पाने को,
हो व्याकुल अंत  ज्ञान प्रकाश जगाने को,
दग्ध करो संस्कार कई जन्मों के सारे,
प्राप्त करो ब्रह्मज्ञान,मत बैठो भाग्य  सहारे |

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