Sunday, January 23, 2011

सच्चे आध्यात्मिक सत्संग की महिमा




लोग इतने असुरक्षित  एंव भयभीत कभी न थे ,जितना वर्तमान में है | आज कल हम हर दूसरी-तीसरी गली में धार्मिक परिसंवाद होते देख रहे हैं,जो आज से 15-20 साल पहले नदारत थे | धार्मिक नेताओं और स्वघोषित उदघृत गुरुओं की बाढ़ सी आ गई है | वे भजन गाते हैं और पवित्र शास्त्रों से कथाएँ सुनाते हैं | उनमें केवल शास्त्रीय ज्ञान होता है,परन्तु  इस से वे अपनी तिजोरियां  भरने में व्यस्त रहते हैं| इतने पर  भी,उन्होंने  ने लोगों के परेशान हिरदों में सत्संग के महत्व और उसकी आवश्कयता  उनके जीवन में उतारा है | अस्तु एक स्वाभाविक प्रशन उठता है कि इतने अधिक सत्संग कार्यक्रमों  के चलते मानव जीवन की समग्रता में,सतत शीनता एंव हास क्यों हो रहा है |
समाज में आज पापों का बोलबाला है,और सदगुणों का हास हो रहा है | धर्म तथा धार्मिकता पीछे धकेल दिए गए हैं | स्त्रियों  का अपमान तथा दीन - दुर्बल लोगों का अनादर एस कदर बढ़ गया है कि,डर लगने लगा है | मनुष्य आज अपनी इन्द्रयों का गुलाम बन चुका है | भोग विलास की वस्तुओं को पाने की लालसा और ललक  भगवान के प्रति प्रेम से अधिक वरीयता प्राप्त कर रही है | इस विश्व के निर्माता और उसकी लीलाओं पर विचार करने की किसी को फुर्सत नहीं है | माता के गर्भ में परमात्मा को दिया वचन लोगों ने भुला दिया है | भोतिक विचार और सांसारिक सुख - भोग मनुष्यों के दिमाग में पहले स्थान पर है |
केवल भजन और धार्मिक प्रवचनों को सुनना ,मंत्र एंव स्तोत्रों का उच्चारण,पवित्र शास्त्र ग्रंथों का धार्मिक रीती रिवाज के साथ पाठ करना,ये सब समाज के नैतिक ढांचे  में वांच्छित  परिवर्तन नहीं ला रहे | यह सब इस लिए हो रहा है कि सच्चे अध्यात्मिक सत्संग हमारे वास्ते निष्पादित नहीं किये जाते | आज सत्संग शब्द व्यापक रूप से गलत समझा गया है,तथा इस की गलत  व्याख्या की गई है |
प्रत्येक  अध्यात्मिक कार्यक्रम  को आज सत्संग कहने का फैशन सा हो गया है | यह शब्द सत+संग को मिलाकर बना है | सत का अर्थ है,सच्चा और संग का अर्थ है मिलन | जो हम आँखों से देखते हैं,वह प्रत्येक वस्तु शन भंगुर है और मोह माया है | नजदीक से नजदीक का सम्बन्ध भी स्वार्थ - परता से रहित नहीं है | इस संसार में सत्य तो केवल परब्रह्म परमात्मा का पवित्र एंव शास्वत  नाम ही है | उसके साथ सम्बन्ध का होना वास्तविक स्थाई तथा सदा रहने वाला है | इस लिए आवश्कता  है ,परमात्मा के पवित्र नाम को जान ने की | यह संसार की स्रष्टि  के पहले भी बिद्यमान  था | सत्संग परमात्मा की महिमा और उसकी लीलाओं का सैद्धन्तिक  विवरण भर नहीं है | सत्संग तब  घटता है,जब किसी सच्चे संत के द्वारा 'दिव्य दृष्टि' प्रदान करने पर हम 'दिव्य-ज्योति को देखते हैं और अनुभव करते हैं |
"एक पूर्ण आध्यात्मिक सतगुरु,जिसने ईश्वर को देखा है,जाना है,वही दिव्य ज्ञान दे सकता है | न कि वे,जो शास्त्रीय ज्ञान ही रखते हैं |" इस प्रकार हमको एक सच्चे संत की आवश्कयता है ,जो सच्चा सत्संग पर्दान कर सके | सत्संग तब घटता  है,जब आत्मा के ज्ञान का साक्षात्कार  होता है | इस से हम मानव शरीर  के भीतर ही परमात्मा के साक्षात्कार को कर लेने के समर्थ हो जाते हैं | इस लिए एक ऐसे समकालीन दक्ष सतगुरु को खोजना है,जो ब्रहम ज्ञान द्वारा परमात्मा का उसी समय दर्शन करवा सके |

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