Sunday, January 30, 2011

जिन खोजा तिन पाइया !


 Seek & you shall find it!

आत्मा सबकी प्यासी है | एक अजीब-सी बेचैनी, एक अधूरापन-सबको सालता रहता है | एक दर्द भरी कराह सबके अंदर करवटें लेती हैं | लेकिन कुछ बिरले होते हैं ,जो अपनी रूह की इस प्यास को पहचान पाते हैं |  अपने में गहरा झांककर आत्मा का रोना-बिलखना समझ पाते हैं और फिर समझने के बाद, उसका दाना-पानी जुटाने के लिए चल पड़ते हैं | 'आत्मा' का भोजन और रस परमात्मा है - रसो वै स: | भगवान से मिलकर ही रूह की भूख मिटती है | रूह की प्यास बुझती है | इस लिए वे विरले जिज्ञासु निकल पड़ते हैं, एक खोज में, जिसका एक ही लक्ष्य होता है - 'ईश्वर' ! इस खोज-यात्रा में तरह-तरह के पड़ाव आते हैं | कहीं पाखंड का झाला मिलता है, कहीं ऊलजलूल  रूढ़ियों  का मकड़ जाल ! कहीं-कहीं तो जिज्ञासुओं का मन-धन ठगने के लिए बड़ी लुभावनी मेडीटेशन तकनीकें या पद्धतियाँ भी ईजाद कर ली जाती हैं | जिज्ञासु  को उल्लू बनाने के लिए 'ईश्वर' के नाम पर क्या क्या पैंतरे नहीं फेंके जाते!
अकसर बहुत लोग श्री गुरू आशुतोष महाराज जी से पूछते हैं - 'ऐसा क्यों होता है कि ईश्वर अन्वेषी ढोंग और पाखंड के चक्रव्यहू में फँस जाते हैं?' श्री महाराज जी सटीक उत्तर दिया करते हैं - 'फंसते वही हैं, जिन्होंने अभी तक अपनी आत्मा की कराह को ठीक से सुना नहीं होता; जो अपनी आत्मा नहीं, मन की प्यास को लेकर सत्य की खोज में निकलते हैं | इसलिए जहाँ कहीं उन्हें अपने मन के अनुकूल कुछ मिलता है,वे ठहर जाते हैं | लेकिन ईश्वर के परवाने (जिज्ञासु) ईश्वर से एक पाई भी कम में सौदा नहीं करते | The real seekers of God do not settle for even a penny less than God ! वे तब तक पंख फड़फड़ाते  हैं,जब तक ईश्वर की दिव्य ज्योति का दर्शन नहीं कर लेते | वे तब तक खोजते हैं,जब तक एक पूर्ण तत्वदर्शी गुरू की आशीष छाया में नहीं आ जाते और उनसे 'ईश्वर' रुपी परम सौगात नहीं पा लेते !'
इस लिए एक पूर्ण संत की खोज करे जो दीक्षा के समय ही परमात्मा क दर्शन करवा दे | अगर कहीं भी आप को ऐसा संत नहीं  मिलता,एक बार 'दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ' में जरूर पधारे | यहाँ आप सादर आमंत्रित है | आपको  यहाँ अवश्य ही शुद्ध कुंदन सी चमक मिलेगी | यह अहंकार नहीं,गर्व है! बहकावा नहीं,दावा है ! जो एक नहीं, श्री आशुतोष महाराज जी के हर शिष्य के मुख पर सजा है -'हमने ईश्वरीय ज्योति अर्थात प्रकाश और अनंत अलोकिक नजारे देखे है | अपने अंतर्जगत में ! वो भी दीक्षा के समय | हम ने उस प्रभु का दर्शन किया है,और आप भी कर सकते
 हैं |


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