Sunday, January 23, 2011

एक सनातन परंपरा




लेकर 'समर्थ' से ज्ञान,शिवाजी ने अधर्म से युद्ध किया,
रकत - रंजित मन अशोक का, बुद्ध मिले तो शुद्ध हुआ |

जनक को द्विज कर अष्टावक्र ने,पूर्व भक्ति का त्राण दिया |
और चाणक्य  ने चन्द्रगुप्त की,सुप्त शक्ति को प्राण दिया |

श्रीराम छत्र तले हनुमान ने, सौ योजन पार किया,
पाकर दिव्य नेत्र केशव से,अर्जुन ने कर्म - निष्काम किया |

मीरा हो या खुसरो अमीर ,सूरदास हो या कबीर,
ले पलकों पर अश्रुनीर,धोते रहे सतगुरु कुटीर |

ध्रुव - प्रहलाद को नारद ने ही, अविचल पद पर पहुँचाया,
सकल - विश्व का सूत्रधार,सतगुरू की काया धर आया |

इस लिए अगर हम भी अपने जीवन को सार्थक करना चाहते हैं,ईश्वर का दर्शन करना चाहते हैं | हमें भी पूर्ण संत की शरण में जाना ही पड़ेगा | ऐसे पूर्ण  संत की खोज करे जो हमें दीक्षा के समय परमात्मा का दर्शन करवा दे |  कहीं भी आप को ऐसासंत नहीं  मिलता,एक बार 'दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ' में जरूर पधारे | यहाँ आप सादर आमंत्रित है | आपको  यहाँ अवश्य ही शुद्ध कुंदन सी चमक मिलेगी | यह अहंकार नहीं,गर्व है! बहकावा नहीं,दावा है ! जो एक नहीं, श्री आशुतोष महाराज जी के हर शिष्य के मुख पर सजा है -'हमने ईश्वरीय ज्योति अर्थात प्रकाश और अनंत अलोकिक नजारे देखे है | अपने अंतर्जगत में ! वो भी दीक्षा के समय | हम ने उस प्रभु का दर्शन किया है,और आप भी कर सकते हैं |

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