Sunday, January 23, 2011

जब तक गुरु मिलें नहीं साचा




जब तक गुरु मिलें नहीं साचा |चाहे करो दस या करो पचासा ||
  
संत कबीर जी कहते हैं कि जब तक सच्चा गुरू नहीं मिलता तब तक चाहे दस गुरू करने पड़े या पचास | आज के समय में बहुत से लोगों का यह प्रशन है कि अगर हम ने एक गुरू को छोड़ कर दूसरा कर लिया तो हमें बहुत बड़ा पाप लगेगा ? ऐसा आज नहीं पहले भी होता आया है | स्वामी विवेकानंद जी के साथ भी ऐसा ही हुआ | वह भी बहुत से गुरुओं के पास गए | वो जीवन में 52 गुरू के पास गए | परन्तु  वे सब नाम के गुरू थे | ज्ञान से उनका दूर का भी रिश्ता न था |  इस प्रकार  पूर्ण गुरू की तलाश करते -करते विवेकानंद (जिनका पहला नाम नरेन्द्र था ) के हिरदे से परमात्मा के प्रति भी विश्वास उठने लगा | एक वार नरेन्द्र अपने मित्र के घर गए थे,वहां पर स्वामी रामकृषण परमहंस जी आये थे | वहां पर नरेन्द्र ने एक भजन गाया | भजन समाप्त होने के बाद उन्होंने कहा कि नरेन्द्र ! तुम कहाँ थे ? मैं न जाने कब से तुमारा इंतजार कर रहा था | लेकिन नरेन्द्र  ने सीधा जबाब देते हुआ कहा कि मैं आप की चिकनी चोपड़ी  बातों में आने वाला नहीं यदि आप को मेरा भजन पसंद आया है तो इसके लिए धन्यवाद ! लेकिन मैं आपसे यह जरूर पूछना चाहूँगा कि क्या परमात्मा है ? तब रामकृष्ण ने कहा," हाँ परमात्मा है |" तब स्वामी रामकृष्ण ने कहा कि नरेन्द्र इस समय सबसे निकट मेरे तुम खड़े हो,परन्तु मैं तुम से भी निकट उस परमात्मा को देख रहा हूँ | नरेन्द्र ने  कहा कि इसका क्या प्रमाण  है कि आप जो कह रहे हो वह सत्य ही है ? तब रामकृष्ण परमहंस ने कहा कि इसका प्रमाण यह है कि तुम भी जान लो |
उस के बाद स्वामी रामकृषण जी ने नरेन्द्र  को तत्व ज्ञान दिया | इस महान ज्ञान को जान लेने के बाद ही नरेंद्र ' स्वामी विवेकानंद' कहलाए और स्वय जीवन में शाश्वत सुख की प्राप्ति कर उस सत्य का ही परचार किया | इस लिए कहते हैं कि प्रत्यक्ष  को प्रमाण की कोई जरूरत नहीं पड़ती,वह ईश्वर तो हिरदे में ही है | जरूरत है पूर्ण सतगुरू की जो हमें हिरदे में ही प्रभु का दर्शन करवा दे,वही पूर्ण सतगुरु है | इस लिए आप भी ऐसे पूर्ण गुरू की खोज करो जो उसी समय परमात्मा का दर्शन करवा दे | अगर कहीं भी आप को ऐसा सतगुरू नहीं  मिलता,एक बार 'दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ' में जरूर पधारे | यहाँ आप सादर आमंत्रित है | आपको  यहाँ अवश्य ही शुद्ध कुंदन सी चमक मिलेगी | यह अहंकार नहीं,गर्व है! बहकावा नहीं,दावा है ! जो एक नहीं, श्री आशुतोष महाराज जी के हर शिष्य के मुख पर सजा है -'हमने ईश्वरीय ज्योति अर्थात प्रकाश और अनंत अलोकिक नजारे देखे है | अपने अंतर्जगत में ! वो भी दीक्षा के समय | हम ने उस प्रभु का दर्शन किया है,और आप भी कर सकते हो | For more detail visit on www.djjs.org

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