Thursday, January 27, 2011

ये कैसी घड़ी है !


विश्व विनाश की कगार पे खड़ा है 
और सबको अपनी - अपनी पड़ी है
हाय,ये कैसी मुश्किल घड़ी है !

 चारों ओर आतंक का बारूद विछा है
तूफान आने को तैयार खड़ा है
धूं -धूं कर मानवता जल रही है
तुझे बस अपना घरोंदा बनाने की पड़ी हैं
हाय, ये कैसी मुश्किल घड़ी है!

 स्वार्थ में अंधा हो चले जा रहा है
बस अपने लिए तू जीए जा रहा है 
पितृ-ऋण, मातृ-ऋण, पत्नी-ऋण, पुत्र-ऋण
जाने कितने ही ऋणों को चुकाया है तूने
पर क्यों इस धरा ऋण को समझा न तूने
घुटती मानवता अधर में खड़ी है
हाय, ये कैसी मुश्किल घड़ी है!

ये तूफान सबको मिटा देगा आकर
बारूद के धुएं सब जला देंगे छा कर 
विश्व को बचाने आए हैं सदगुरु
देख जरा संकुचित दायरों से निकलकर 
घरोंदे से निकल देख राहों में चलकर 
ये परमार्थ का मार्ग है बड़ा आनंदकर
जो सुख मिलेगा दूसरों को सुख देकर
वो सुख न मिलेगा घरोंदे में रहकर

 पूरे विश्व को अपना घर तू बना ले
इस तपती धरा की तपिश को बुझा दे
नहीं फिर पछताएगा करनी पे अपनी
मिलेगा सुकून नेक करनी पे अपनी 
इस लिए अब...

सदगुरु के चरणों में गिरने की घड़ी है!
राहों पे उनके मिटने की घड़ी है!
ये न कहो बस, ये कैसी घड़ी है!
भटके को सन्मार्ग  पे चलाने की घड़ी है!
डूबते हुए को बचाने की घड़ी है!
कैसी घड़ी है ये कैसी घड़ी है !
प्यारे,ये कुछ कर गुजरने की घड़ी है !

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